मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

(तृतीय अंक नंदी महाराज)

(तृतीय अंक नंदी महाराज) स्वप्न टूटने के बाद ,ललाट पर हल्की-हल्की पानी की बूदें ,उठकर बैठा और तकिए को पीछे लगाया , रात्रि के स्वप्न को पुनरावृति करने का प्रयास करने लगा।सोंचने लगा,मैं दुर्राचारी था अत्याचारी था।हाँ मैं नास्तिष्क हो सकता हूँ लेकिन विध्वसकारी होना तो सभ्यता का विनाश हैं।मैंने प्रजा का शोषण ही किया है,मैं खतनांक,खूँखार जालिम था।महात्मा ने ठीक ही कहाँ था,कि श्राप वरदान ह्रदय से निकली आवाज़ का प्रतिनिधी करता हैं।मेरे कर्मो का फल का स्वरूप ही श्राप हैं।चार नवजात शिशु को काल के ग्रास में जाना श्राप का ही प्रतिफल हैं।पहला शिशु खोया तो यह समझकर नज़र अंदाज कर दिया कि उपचार सम्बन्धित कमी रह गई होंगी।आगाज से ही उपचार कराता रहा किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी लेकिन जन्म के बाद अक्समात शिशु का चला जाना ,न चाहते हुए भी कारक और कारण की पहेली को खोजन की जिज्ञाशा भयभीत में बदल गई।चार शिशु को खोना,किलकारी काँनो में गूंजने की अपेक्षा काल की भयभीत आव़ाजे सुनाई देती हैं। कारक और कारण की पहेली के चक्रव्यूय से निकलने का मार्ग तो मिल चुका था,मार्ग में बढ़ना शेष था।यह सोच ही रहा था तभी सम्भावना चाय लेकर आई:-आप को चाय गर्म ही पीने की आदत हैं।आपके ललाट पर चिन्ता की रेखाएँ क्यों दिखाई दे रही हैं।आपके व्यवहार में परिवर्तन देखकर बहुत अच्छा लगा।उस महापुरुष को बहुत-बहुत धन्यावाद देना चाहती हूँ जिसने नास्तिक को आस्तिक बना दिया।हम तो तर्क- वितर्क,समझा कर थक चुके थे।हर बार हमारे बीच झगडा़ का कारण ईश्वर की साधना के प्रति मतभेद होता रहा है।कोटि -कोटि धन्यवाद देती हो महात्मा जी को।आप चिन्तित क्यों है अब क्या कारण हैं? अवनीश:-कुछ नही!सोचा फिर कहाँ," सम्भावना !कर्मो का फल मिलता है ,क्या ऐसा सच में होता है?" सम्भावना:-आप ने ऐसा क्यों पूछाँ? अवनीश:-महात्मा ने कहाँ था,कि व्यक्ति को कर्मो का फल मिलता हैं। हमारी चार संतान हुई और चारों शिशु की किलकारी भी न सुन सका,यह सब हमारे कर्मो का फल है जो श्राप बनकर किसी भी जन्म में पीछा नहीं छोडे़गा।हमको मिलकर प्रयत्न करना होगा ,गलतियों को सुधारना होगा तब ही श्राप से मुक्ती मिलेगी। सम्भावना:-ऐसा क्या करना होगा?जिससे श्राप से मुक्ती मिल जायें। अवनीश:-आज रात्रि के स्वप्न से महात्मा के द्वारा कहे गये कथन सच हो रहे हैं।कहकर रात्रि के स्वप्न को बिस्तार पूर्वक कह सुनाया। सम्भावना ने गहरी सांस ली.......क्या करना है? अवनीश स्वप्न में उस गाँव का चित्रण प्रकट हुआ है,वहाँ जाना और अपने कर्म को सुधारना ही होगा। ***** अपने गलती को सुधारने निकल पढ़े।चार सौ किलो मीटर का सफ़र तय करना था।अवनीश और सम्भावना मधुर संगीत सुन रहे है और गाडी़ सरपट दौड़ रही हैं।अचानक सामने गिरा हुआ पेड़ नज़र आया,ब्रेक लगा दिए।हल्की-हल्की बरसात भी हो रही थी।भयभीत होने लगें ,आसपास और कोई नहीं था।दोंनो भयभीत होने लगें....डरते -डरते अवनीश निकला और दबे पाँव धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा,पेड़ गिरने के कारण आगे जाने का रास्ता बंद हो चुका था।सम्भावना गाड़ी के अंदर ही थी,अब करे तो क्या करें,अवनीश भी गाडी़ में आ गया। अवनीश:-आगे जाने का रास्ता बंद हो चुका है,अब क्या करें।शाम तक गाँव में पहुँचना ही होगा।अंजान रास्ता है अंजान शहर है,ऐसे किसी पर भी विश्वास करना मुसीबत को निमंत्रण होंगा। सम्भावना:-करें तो क्या करें?यहाँ मोबाईल सिग्नल भी नहीं आ रहे कि गूगल करके दूसरा रास्ता भी खोज लें।कैसे भी करके यही से आगे जाने के लिए रास्ता बनाना होंगा। अवनीश:-हम दोनों क्या कर सकते हैं? सम्भावना:-दृढ़ विश्वास हो तो कुछ भी कर सकते है,हमको मिलकर पुरूषार्थ करना ही होगा।सफ़र पर निकललने से पहले हमने आवश्यक सामान एकत्रित करके रख लिया था।इस समय हमारे पास जो भी सामान उपलब्ध है ,उसका ही उपयोग करके रास्ता बनाना होगा। अवनीश:-क्या-क्या सामान लाई हो? सम्भावना:-यह टूल बाक्स है,देखो क्या है,क्या काम में आ सकता हैं। उस टूल बाक्स में,छोटी सी टुकड़ो में भिभाजित कुल्हाडी,छोटी सी कटर मशीन,कुदाल,इत्यादि आवश्यक सामान था।कटर मशीन को चलाने के लिए बिजली चाहिए,लेकिन कहाँ से आयें।कटर मशीन को बैटरी से चलाया जाता हैं।वाहन में बैटरी तो होती ही हैं।उस बैटरी की ही सहायता से कटर मशीन को चलाया जाता हैं।दोंनो ने अपनी सूझ-बूझ से,टूल बाक्स के उपकरणो का प्रयोग करके,समस्या का निराकरण कर लिया।इस कार्य में एक घंटा का समय लगा।लम्बा सफ़र था अनचाह मुश्किलों से बचने के लिए।सफ़र से निकलने से पहले गाड़ी की सर्विस कराई,आवश्यक बस्तुओं को जमा करके रखा।गाडॆी की टक़ी फुल कराने के बाद भी पैट्रोल को लेकर रखा।गाडी सी एन जी और पैट्रोल से चलती थी।खाने -पीने का सामान भी रखा था।सफ़र पर निकलने से पहले रणनीति बनाई ,क्या-क्या सामान ले जाना चाहिए,किस-किस की आवश्यकता पढ़ सकती हैं।गाँव पहुँचने से पहले कही और रुकना न पड़े।अंजान सफ़र पर किसी पर विश्वास नहीं कर सकते हैं।अचानक समस्या आ मिली लेकिन धैर्य और शाहस से उसका भी निराकरण कर लिया।और आगें निकल पढ़ें।सुबह से लगातार चल ही रहे थें।सरकारी बस सेबा का बुक डिपो देखा वहाँ पर खड़ी करके आधा घंटा आराम किया होगा।किसी को भी अपने सफ़र से परिचय न कराया कहाँ जाना है किस कार्य से,सफ़र में मिलने बाले मुसाफिरों से कभी भी कहाँ जा रहे है किसलिए जा रहे है,चर्चा नहीं करनी चाहिए।सरकारी बुक डिपो के बाद यहाँ पर मुश्किल के कारण रुकना पड़ा। बरसात हो रही थी इस कारण से वाहन कम चल रहे थें। ऐसा नहीं था कि इस सड़क पर कम चहल-पहल होती है।हमेशा व्यस्त रहने बाली सड़क पर एक घंटे तक अन्य कोई साधन सवारी न आई यह भी एक आश्चर्य था।जैसे ही दोंनो ने रास्ते से पेड़ हटा दिया कि साधनो का रेला चला आया।एक घंटे के अंतराल तक किसी का न आना संयोग था या कुछ और था।दोनों ने अपनी सूझ-बूझ से रास्ता खोल दिया,यह परीक्षा ही थी। चलते-चलते गाँव की सीमाओ में प्रवेश करने से पहले,अचानक तूफान के साथ मूसलाधार बारिस होने लगीं।ऐसा प्रतीत होता था कि कोई शक्ति आगे जाने से रोक रही थी।अवनीश अवरोध को हटाकर जाने का प्रयास कर रहा था,तीसरा गैर भी डाल दिया लेकिन आगे जाने की बजाय,टायर वही पर फिसलने लगें।सम्भावना ने गाड़ी को बंद कर दिया। अवनीश:-गाड़ी बंद क्यों कर दी?गाँव की सीमा में प्रवेश करना ही होंगा। सम्भावना:-आपको क्रोध से नही धैर्य और शाहस से प्रत्येक समस्या का निराकरण करना है।आप अभी भी नहीं समझ पा रहे है कोई दिव्य शक्ति है जो आगे जाने से रोक रही हैं।आप स्वयं नहीं देख रहे,अचानक तूफा़न के साथ मूसलाधार बारिस आ गई। आपने बहुत प्रयास किया लेकिन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी हैं।समझो अदृश्य शक्ति अवरोध उत्तपन्न कर रही हैं। हमको यही रूकना चाहिए,समस्या उत्तपन्न हुई है तो निराकरण भी होगा। अवनीश ने गाड़ी को पीछे करके एक तरफ़ कर लिया।:-क्या सोंचा था कि शामतक गाँव में प्रवेश कर जायेगें,लेकिन सोंचने से होता क्या है,होगा वही जो प्रभू की इच्छा।गाड़ी को एक तरफ़ लगाया कि तूफा़न और बरसात भी शान्त हो गई। सम्भावना:-आपके मुख से प्रभू इच्छा सुनकर अच्छा लगा।आज से पहले यही कहते थे होगा वही जो मैं चाहूँगा। अवनीश:-तब में और आज में अंतर हैं।मैं जान चुका हूँ,प्रभू इच्छा से एक पत्ता भी हिल नहीं सकता हैं।अगर ऐसा होता तो मैं आज निसंतान न होता। सम्भावना:-बीते कल को ही ठीक करने निकले हैं। बातों -बातो में कुछ समय गुजर गया..अवनीश:-सम्भावना कुछ खाने को दों। सम्भावना:-ठीक है।पराठो को सॉस के साथ दिया...लो। अवनीश और सम्भावना पीछे बैठे हुए थें।जैसे ही अवनीश ने खाने के लिए निवाला तोड़कर मुख में रखना चाहा,वैसे ही किसी ने दरबाजे के शीशे पर ,हाथ की थाप बजाई...थप थप । अवनीश ने सम्भावना को ऊँगली से शान्त होने को कहाँ,फिर शीशे को हल्का सा नीचे किया।तो देखा दो छोटे-छोटे बच्चे खाने के लिए कुछ याचना कर रहे थें। अवनीश ने देखा तो स्नेह उमड़ पड़ा और अपना और सम्भावना का भोजन बच्चों को दे दिया।बच्चे भोजन लेकर चले गयें।गाँव की सीमा पर कुछ दुकाने भी थी जिसपर सामान लेने बालों को देखा जा सकता था।अचानक दुकान बाले शौर करने लगें,कह रहे थे बाहर रहने बाले दुकान में शरण ले लो।यह बैल खूँखार है,इसके रास्ते में जो भी मिलता है उसको उठाकर पट़क देता हैं।इस बैल के मार्ग में अवरोध उत्तपन्न न करें ,यह जहाँ जाना चाहता है स्वेच्छा से जाने दें। दोनों अपनी गाडी़ में ही बैठे थे कि अचानक तूफा़न जैसा प्रतीत हुआ ,शीशे से देखा तो बैल था जिसने सींगो से प्रहार करके गाडी को पलट दिया,अवनीश ने शाहस करकें शीशे को नीचे किया और पहले स्वयं निकला और सम्भावना को निकालना चाहता था,उससे पहले बैल ने अवनीश को सींगो पर उठ़ा लिया और इधर -उधर दोड़ने लगा।सम्भावना अंदर ही थी...अंदर से ही बचाओ-बचाओ आवाज लगा रही थी। सम्भावना ने बचाओ-बचाओ आवाज को शान्त किया और एक गहरी सांस ली और स्वयं प्रयास करके खिड़की से बाहर निकली।अवनीश से कहने लगीं,जो बैल के सींगो पर था, बैल गिराने का प्रयास कर रहा था लेकिन अवनीश ने कसकर सीगों को पकड़ लिया।सम्भावना बैल के आगे आकर अवनीश को कुछ कहने का प्रयास करने लगी।अवनीश सम्भावना से मार्ग से हटने को कह रहा था और सुरक्षित स्थान पर जाने को कह रहा था. अवनीश:-सम्भावना जाओ,दुकान में शरण ले लों।जाओ जाओ,मार्ग से हट जाओ। बैल सम्भावना के सामने से हटकर दूसरे मार्ग की तरफ़ चला जाता।अवनीश और बैल म़े एक संर्घष हो रहा था अवनीश ने कसकर सींग पकड़ लिए थे।बैल अवनीश को गिराने की कोशिश कर रहा था।दोंनो में संर्घष चल रहा था। सम्भावना:-अवनीश अवनीश सोचों सोंचो। यह तुम्हारी परीक्षा है।मैं बैल के मार्ग में ही हूँ फिर भी मुझको हानि पहुँचायें अलग मार्ग में चला जाता है क्यों?सोंचो सोचों।यह साधारण बैल नहीं है।महादेव का वाहन है,सबारी हैं।इसको शान्त करने का एक ही मार्ग है।अपने गले की रुद्धाक्ष बैल के सीगों में डालने का प्रयास करों। सम्भावना की बात को सुना ।जैसा कहाँ था बैसा ही किया।बैल ने अपने सीगों से उछाल कर पास के खेतों में फैक दिया और बैल चला गया।सम्भावना अवनीश के पास गई।व्याकुल थी आँखो से अश्व झल़क आयें।अपने हाथ का सहारा देकर उठाना चाहा।अवनीश भी उठना चाह रहा था कि अचानक हाथों के नीचे कोई बस्तु का एहसास हुआ। अवनीश:-सम्भावना सम्भावना यहाँ कुछ हैं। सम्भावना:-क्या है?और नीचे झुक गई।छूकर देखा। दोनों ने आसपास की मिट्टी हटाकर देखी तो नंदी जी की प्रतिमा थी।दोनों ने बाहर निकाला तो आसपास के लोग भी एकत्रित हो गयें।जय हो नंदी महाराज।यह तो चमत्कार हो गया।लोग कह भी रहे थे,शायद अब इस गाँव से श्राप दूर हों।जय हो नंदी महाराज।जय हो नंदी महाराज। (तृतीय अंक समाप्त)

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

निराकरण(वेब सीरीज द्वतीय अंक)"क्रू महाराज"

(द्वतीय अंक"निराकरण"क्रू महाराज) रात्रि का तीसरा पहर था,गहरी निद्रा अवस्था में अवनीश था।स्वप्न का आरम्भ हुआ और अवनीश गहरी निद्रा में खोता ही जा रहा था,दो सौ वर्ष पहले की अवस्था में स्वप्न के माध्यम स्वरूप पहुँच गया। अंग्रेजो का शासन था लेकिन भीलगढ़ में रजत प्रताप महाराजा का शासन था। राजा दुष्ट दुर्राचारी था।अपने शासन को बनायें रखने के लिए अंग्रेजों के साथ संन्धि कर ली ।अंग्रेजो के काल में निम्न वर्गो की आर्थिक स्थति बहुत ही खराब थी।राज्य का राजा ही क्रू हो तो प्रजा कुशहाल कैसे हो सकती हैं।व्यापारी,किसान पसीने से सींचकर वास्तविक स्वरूप प्रदान करते जैसे किसान का अनाज, लेकिन उसका सही दाम ही नहीं मिलता था।पेट की आँतो को देखा जा सकता है,हड्डियों का ढाँचा जिसमें एक-एक हड्डी को गिन सकते हैं।राज्य की कुशहाली नहीं राजा की कुशहाली,प्रजा की मेहनत से अंग्रेजो के खजाने में बढ़ोतरी करने से होती थी।प्रजा की किस्मत में दुख,भूख से मुरझायें चहरे ही थें।बुनकर सुन्दर-सुन्दर वस्त्र बनाते लेकिन शरीर पर फटे पुराने ही बस्त्र थें।सुन्दर आभूषण बनाते लेकिन महिलाओ के काँन के छिद्र ही दिखाई देते थें।सब अपने काम को पूर्ण निष्ठा से निभाते लेकिन उसका मूल्य नहीं मिलता था।कही तरह के कर के कारण स्थति बिगड़ चुकी थी। भीलगढ़ राज्य की प्रजा दुखी थी।उस राज्य में एक गाँव था,वो कुशहाल था।भरपेट भोजन था,पहनने को वस्त्र थे और सौन्दर्य निखार के लिए आभूषण थें।गाँवबासी कुशहाल थें।ऐसा नहीं था राजा के कर में कोई कटौती की थी,बल्कि कर से अधिक ही राजकोष में जमा होता था।गाँव कुशहाल था ,इसका कारण एक रहस्य था।इस कारण का कभी भेद न खुलता अगर राजा विहार भ्रमण के लिए उधर से न गुजरता। राजा रजत प्रताप अपनी प्रियं पत्नी चिदम्बरा के साथ विहार भ्रंमण पर निकलें। सुरक्षा के लिए अंगरक्षक साथ में थें।राजा घोडे़ पर सबार होकर निकला,पत्नी डोली में थी,साथ में सेबिकायें भी चल रही थी।शाम का पहर था ,रात्रि का आगाज हो चुका था।आगे की यात्रा करना ठीक नहीं था।उसी गाँव में अपनी छाँवनी लगा ली।अंगरक्षको ने गाँव में ढोल़ बजाकर सूचना दी कि राजाजी विहार भ्रंमण के लिए निकले है, आज की रात्रि विश्राम के लिए इस गाँव में पढ़ाव डाला हैं।यथा सम्भव नहीं राजा रानी की सेवा में कुछ-कुछ उपहार प्रस्तुति करें।,प्रजा का कर्तव्य बनता हैं कि अपने राजा-रानी की सेवा करें,यह अवश्य भाग्य से प्राप्त होता हैं।रात्रि के रंगायन कार्यक्रम के उपरान्त राजा-रानी को उपहार भेट करें। गाँव के प्रबंधक सेवक के ऊपर रंगायन कार्यक्रम को सुखद बनाने के लिए दायत्व सोफा़।गाँव के प्रबंधक सेवक ने भव्य आयोजन का प्रबंध किया।रंगायन कार्यक्रम के लिए नृत्यं संगीत का आयोजन किया।भव्य स्वागत था,राजा भी आश्चर्य चकित था,प्रजा ने शानदार आयोजन कैसे किया।रंगायन कार्यक्रम समाप्त के बाद प्रजा ने उपहार स्वरूप सुन्दर-सुन्दर आभूषण राजा रानी को भेट स्वरूप दिए।सोने-चाँदी,रत्न से शुशोभित आभूषण,मुद्रा स्वरूप सोने की गिन्नी।प्रजा के ठाट-बाट से लगता ही नहीं था कि यह प्रजा हैं।प्रजा सम्मपन्न और कुशहाल क्यों हैं।क्या कारण है कर देने के बाद भी सम्मपन्न हैं।राजा चिन्तित था,अनेक प्रश्न थे जो राजा को भयभीत कर रहे थे कि कही मेरा शासन समाप्त न हो जायें।कोई अन्य राजा न बन जायें और प्रजा पर शासन करने लगें।अपने भ्रंम के उत्तर के लिए ,राजा ने प्रबंधक को बुलाया। प्रबधंक अपने साथ बहुत से आभूषण और मुद्रायें लाया था...जी महाराज को प्रणाम ,शीष झुकाकर नमन किया। राजा ने थालियों में उपहार देख कर पूँछा,"हमारे राज्य में सब सुख सम्मपन्न है,यह देखकर अच्छा लगा।अन्य गाँव के प्रबंधक आकर गरीब,आर्थिक स्थति का बिलाप क्यों करते हैं?ऐसा क्या है जिसके कारण यहाँ सुख सम्मपन्न है? अन्य ग्रामीण बिलाप करते हैं? प्रबंधक:-महाराज जी...अन्य गाँव की इस गाँव से तुलना नहीं कर सकते हैं।इस गाँव पर भगवान शिवजी की कृपा है जिसके कारण यहाँ सुख समृद्धता हैं। राजा रजत प्रताप:-ऐसे कैसे? प्रबंधक:-यहाँ अनादकाल से शिवालय है,मान्यया ऐसी है यहाँ स्वयं माता गौरी के साथ शिवजी स्वयं विराजमान हुए हैं।यहाँ के पूर्वजो ने तन,मन,से अराधना की शिवजी को यहाँ पर स्थापना करने के लिए।शिवजी के यहाँ स्थापना करने से पूर्व ग्रामीण बासी बहुत ही गरीब दुखी थें।इस दुख को सदा के लिए दूर कर दिया।दृढ़ सकंल्प ग्रामीण बासियों का अटूट था,मेघ मूसला धार में बरसे,तूफा़न आया,लेकिन अपने ध्यान से भंग न हुए।तब स्वंय शिवजी माता गौरी के साथ प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहाँ,"ग्रामीण बासियों ने एक स्वर में यही विराजमान होने के लिए आग्रह किया जिससे यहाँ सुख समृद्धा बनी रहें।प्रभू शिवजी यहाँ स्थापति हो गयें।चमत्कार रुप में यहाँ एक खनिज सम्पदा प्रकट हुई। रत्न सोना,रजत रुप में मिट्टी से सूरज की प्रथम किरण के साथ ही अवतरित होते हैं।मंदिर के समीप ही यह स्थल हैं। राजा रजत प्रताप:-चौक कर कहाँ,ऐसा क्या?हमारे राज्य में रत्न,सोना ,रजत मिट्टी से अवतरत होते है तो इनपर एक छत्र राज सिर्फ राजा का होता हैं।यहाँ की प्रजा इस राज को छुपाने की और सम्पदा को हड़पने की दोषी है। प्रबंधक भयभीत होने लगा:-यह क्या राज खोल दिया।अब क्या होगा?महाराज जी यहाँ की सम्पदा सिर्फ ग्रामीण बासियों की है। रजत प्रताप ने इतने शब्द ही सुने और म्यान में से तलवार निकाली और प्रबंधक का शीष धड़ से अलग कर दिया।स्वयं देखना चाहता था कि प्रबधंक की बात में कहाँ तक सत्यता हैं।बास्तव में मिट्टी से रत्न,स्वर्ण,रजत सम्पदा निकलते हैं या भ्रामक कहानी हैं।भेष धारण करकें ग्रामीण बासियों के साथ प्रथम बेला में शिवालय में पहुँच गयें। शिवालय प्रथम बेला में सूरज की प्रथम किरण पढ़ने के साथ चमकने लगा,किस कारण से दृव्य प्रकाश उत्पन्न होता है।यह रहस्य ही था।ग्रामीण बासियो से मिलकर गौरी शिव की पूजा अर्चना की।प्रभू शिवजी,माता गौरी,पुत्र कार्तिक और गणेश के साथ ,वाहन नंदी सबारी के साथ विराजमान हैं।दिव्य आलोखिक प्रकाश मंत्र मुग्ध कर देता हैं।पूजा अर्चना सम्पन्न हुई ,तद पश्चात मिट्टी से रत्न,स्वर्ण और रजत उपरी सतह पर प्रकट होने लगें।राजा की आँखे चकाचौध हो गई,जिससे पहले प्रजा उस सम्पदा को ले पाती।राजा के सैनिक मिट्टी के आसपास घेरा लगाकर कहने लगे,"आगे बढ़ने का प्रयास मत करना."महाराज ने अपना भेष छोडकर बास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गयें। राजा रजत प्रताप:-तुम सबने राज्य और राजा के साथ छ़ल किया है।इस सम्पदा पर सिर्फ राजा का ही अधिकार हैं।तुम सब दोषी हो,इसकी सजा तो अवश्य मिलेगी।"सैनिको सबको पकड़ लो बेड़ियाँ डा़ल दो।" एक बुर्जग:-राजा जी आप यह अच्छा नहीं कर रहे हैं।इस सम्पदा पर सिर्फ ग्रामीण बासियों का अधिकार हैं।इस अधिकार को वल पूर्वक अधिकार पाने की कोशिश भी की तो ईश्वर का वरदान ही अभिश्राप बन जायेगा। राजा रजत प्रताप:-हम राजा है ।हमारे राज्य की प्रत्येक बस्तु पर सिर्फ हमारा ही अधिकार हैं।सैनिको सबके हाथ में बेडिया डाल दों।मिट्टी से उत्पन्न हुई सम्पदा को संरक्षण में ले लों। महाराज का आदेश पाकर,सैनिक सम्पदा को लेने मिट्टी में हाथ डा़ला कि अचानक सम्पदा सर्प के स्वरूप में परिवर्तन हो गयें। उस सैनिक को डस लिया जिसने सम्पदा को छुआ था। वुर्जग:-यह देखकर हँसा...हा हा हा....महाराज जी कहाँ था।इस सम्पदा पर सिर्फ यहाँ के ग्रामीण बासियों का अधिकार है किसी का नहीं।हमारे पूर्वजो ने कठिन तप करके दुख के निराकरण हेतु ईश्वर को यही स्थापति होने का वरदान माँगा था। उस बुर्जग ने इतना ही कहाँ था कि उस बुर्जग का शीष धड़ से अलग कर दिया।अपने क्रोध और अपमान के आवेग में सैनिको को मंदिर विध्वस का आदेश दे दिया।यहाँ अब रक्त की नदियाँ बहेगी।जो मेरा नहीं वो किसी का नहीं।सबके प्राण हर लो।मुक्ती दे दो,इस मंदिर को ध्वस्त कर दों।ईश्वर मुझे नहीं दे सकता उसपर किसी का अधिकार नहीं।सैनिक मंदिर को ध्वस्त करने के लिए नहीं जा रहे थें। सैनिक:-महाराज यह घोर अर्नथ हमसे नहीं होगा,आप चायें तो हमारे शीष धड़ से अलग कर दों। ग्रामीण बासी एक स्वर में राजा से कह रहे थें।महाराज जी आप ऐसा महापाप न करें,आप चाये तो हम सब अपनी सम्पदा आपको पहुँचा दिया करेगें।हमको वरदान रूप में प्राप्त हुई है।मंदिर को ध्वस्त न करें। राजा मंद में चूर था,जो मेरा नहीं वो किसी का नहीं होगा।ग्रामीण बासी बेड़ियों में कैद थे,अपराध करने के लिए रोक रहे थे लेकिन राजा न माना।सीढ़ियाँ चड़ता जा रहा था,पहले घंटे को उखाड़ कर फैक दिया।अचानक भूमि में कम्पन्न होने लगा।सब कुछ हिलने लगा लेकिन राजा ने एक बात न मानी,भूकम्प तीव्र था,सर्पो की सेना एकत्रित हो गई,मंदिर की सुरक्षा के लिए।लेकिन राजा नर संघार बन चुका था।सर्पो को तलबार से मारने का प्रयास कर रहा था।इधर भूकम्प से सब कुछ हिलने लगा।सर्प के रक्त से मंदिर दूर्षित हो चुका था,शिवजी का क्रोध कहे या कुछ और भूकम्प के कारण मंदिर प्रतिष्ठित प्रितमायें और शिवलिग़ स्वयं ही उखड़ कर मिट्टी में लुप्त हो गई।मंदिर रुप में सिर्फ निर्जीव ढाँचा ही शेष था।भूकम्प शान्त हुआ ।जब ग्रामीण बासियों ने अपने अराध्य को मंदिर में न देखा तो सबने एक स्वर में श्राप दिया।माता-पिता के बिना बच्चा अनाथ हो जाता है।हम सब भी आज अनाथ हो गयें है,हमारा श्राप है तुम कभी संतान सुख प्राप्त न कर पाओगें।संतान खोने का दुख क्या होता है।बार-बार जन्म लेना होगा और निसंतान का दुख भोगना होगा। संतान का सुख कभी प्राप्त नहीं होगा।संतान के दुख से हमेशा दुखी रहोगें। राजा रजत प्रताप:-हँसा हा हा हा...,सैनिको को आदेश दिया सबके प्राण हर लों।आज से हमारे राज्य में सिर्फ मेरी ही पूजा होगी।हम ही है सबके ईश्वर,मेरी ही प्रतिमा मंदिर में प्रतिष्ठित होगी।हम ही है सबके ईश्वर,भगवान ।मेरे सिबा अन्य की पूजा अर्चना करता कोई भी पाया गया उसका तत्काल धड़ से शीष अलग कर दिया जायें।इस घटना के बाद और खूँखार दानव राजा बन चुका था।प्रजा त्राहि -त्राहि कर रही थी लेकिन ईश्वर अदृश्य हो चुके थें।शिवजी के सेबक का रक्त देखकर क्रोधित हो चुके थें। भंयानक स्वप्न के साथ अवनीश का स्वप्न भी टूट गया। (सामान्य राजा से खूँखार राजा कैसे बन गया।इसका क्या रहस्य हैं।)अवनीश ने स्वप्न में गाँव का दृश्य देखा था मस्तिष्क में छप चुका था।अपने अपराधो को सुधार करने का एक अवशर मिला था।कैसे प्रतिमाओं को खोजेगा,कौन कौन से अवरोध मार्ग में आयेगें।यह सब जानने के लिए देखते है अगले अंक में।)

निराकरण (वेब सीरीज)प्रथम अंक"ईश्वर का परिचय"

(प्रथम अंक" निराकरण" ईश्वर का परिचय) गर्जना के साथ बरसात हो रही है,बिजली की गड़गडाहट ह्रदय में डर भर देती है कि अभी हमारे ऊपर ही गिर पड़े।मध्यान का समय है ;लेकिन साँझ का पहर लग रहा है।आंसमा में बदली गर्जना के साथ बरसात, जिसके कारण समय का पता ही नहीं लगता।सड़क पर गाड़ियों की लम्बी- लम्बी कतारे लग जाती हैं।सड़क का रूप परिवर्तन हो जाता है,सड़क नदी का स्वरुप और गाड़िया तैरती नाव सी प्रतीत होती हैं।गाड़ियों की हैटलाईट जलती,जैसे दुर्घटना का सूचना तंत्र हो,जिस प्रकार सागर में तैरती नावो पर जलती हैं।बरसात के कारण जीवन थम सा जाता हैं।सबको अपने दिन चर्या कामकाज पर जाने की जल्दी होती हैं।वक्त के साथ धीरे-धीरे बरसात थमती है और जाम भी हटता है; लेकिन गाड़ियों के हार्न ऐसे बजते है जैसे सब बहरे हो चुके हैं।हार्न का अभी कोई कार्य नहीं है जैसे ही आगे का रास्ता साफ़ नज़र आयेगा ,अपनी सूझ-बूझ का सहारा लेकर ,नियमों का पालन कर गाड़ी निकाल लागे लेकिन धैर्य नहीं है और हार्न सुर पकड़ लेते हैं।इन होर्न की आवाजें बेसुरीली होती है,मधुर मिठास की जगह सिर मैं दर्द,चिड़चिडा़पन को बढ़ाती ही हैं।धीरे-धीरे सब जाने लगें।रास्ता खुल चुका था ;लेकिन एक गाड़ी आगे बढ़ने की बजाय वही जाम हो गई।ट्रेफिग हवलदार पास आकर उस गाड़ी को जाने के लिए कहाँ लेकिन उसने सुना नही।तब हवलदार ने डण्डे से शीशे पर प्रहार किया।शीशे पर डण्डें के प्रहार से खिड़की के शीशे को नीचे किया। हवलदार कहता है...तुमको घर नहीं जाना हैं।कब का ट्रेफिक खुल चुका है।बीच में गाडी खड़ा करके अवरोध न उत्तपन्न करों।भाई निकल नहीं तो जबरन कार्यवाही करनी पढ़ेगी। सुनकर गाड़ी आगे चली गई।गाड़ी को ले जाकर पैदल यात्रियों के लिए बनी फुटपाथ पर जाकर खड़ा कर दिया।खिड़की खोलकर एक नवयवुक बाहर निकला।कोट पेन्ट पहने था ,आँख पर पतले लेंश का चश्मा था।चश्मा उतार कर कंधो से अपनी आँखे पोछी।दूसरे हाथ से टाई को ढी़ला किया .अचानक उस व्यक्ति ने दहाड़ना आरम्भ कर दिया और चीख-चीख कर रोने लगा।मोबाईल की घंटी बजी...कार्लर ट्यून थी। उस व्यक्ति ने फोन उठाया:-हैलो! अजनवी महिला:-साहब साहब।घबराई हुई तीव्र ध्वनि की गति से चलती सांसो को सुना जा सकता था। व्यक्ति का नाम अवनीश हैं, जैसे किसी अनहोनी की घटना का पहले से पता हो, लम्बी सांस लेकर कहाँ...हाँ! महिला :-साहब साहब ,मालकिन का चौथा शिशु भी जन्म लेते ही मृत्युं के काल .....कहते कहते रूक गई। अवनीश:-ऐसे असंतोष समाचार सुनने की आदत पढ़ चुकी हैं। कहकर फोन काट देता हैं। (हल्की हल्की बरसात शुरू हो चुकी थी.अपने मुख को आसमान की तरफ़ देखकर ,अपने दोनों हाथों की मुट्ठी बनाकर ,सीना तानकर ,घुटनो के वल जम़ीन पर बैठकर .....चीखता चिल्लाता हैं।आखिर क्यों आखिर क्यों?मेरे साथ ही क्यों होता हैं।सब कुछ ठीक होने के बावजूद आखरी छड़ में बच्चें की रोने की आवाजें काँन में पढ़नी चाहिए थी लेकिन काल की आवाजें क्यों सुनाई देती हैं?भंयकर आवाजें जैसे स्यार रो रहे ह़ो,कुत्ते रो रहे हो,अजीब-अजीब सी आवाजे सुनाई देती हैं।आखिर क्यों क्यों क्यों? हाँ हूँ नास्तिक,हाँ हूँ नास्तिक।श्रृष्टी में कोई शक्ति है जो संचालन करती है तो होने का प्रमाण दों,मुझ जैसे नास्तिक को आस्तिक बना दें।ऐसा कभी नहीं होगा,मुझे नास्तिक से आस्तिक बना दें, ऐसा छड़ कभी नहीं आयेगा। बरसात के संगीतमय सुर के बीच,शंख बंदना,घंटा बंदना,मजीरे बंदना,मृदगं बदना के साथ भजन मंण्डली उधर से गुजर रही थी।रामरस ,कृष्णरस में भक्त आन्नदित थें।नृत्यगान ,भजन रस में हरे रामा!हरे कृष्णा!कृष्णा कृष्णा!राधे श्याम!राधे राधे!सीता रामा!सीता राम!भक्त रस के साथ उधर से जा रहे थें। अवनीश के काँनो में जब भजन और संगीत के सुर पहुँचे तो पहले तो अपने काँन बंद करके सुनना नहीं चाहता था,लेकिन अचानक उसके कद़म स्वयं ही थिरकने लगें,कैसी अद्भुत आकृषक शक्ति थी जो अवनीश को नृत्य के रस से वंचित न कर पाई।कुछ पल उस भावरस में उतर कर भी गोते खाकर एक अशब्दमय सी अनुभूति हो रही थी,जिसको परिभाषित नहीं कर सकता था।भजन मण्डली आगे बढ़ती जा रही थी।एक साधु ने चरणामृत दिया श्रृद्धा के साथ ग्रहण कर लिया।पहले कभी प्रसाद न लेता था ,कोई बाँटता उसको भी अच्छा खासा पाठ पढ़ा देता था।क्या यह प्रसाद है।सब ढो़ग है,ढ़ोगी है।कमाई का साधन हैं।कौन खाने आता है ,बस नाम पर पर्ची कटाते रहो और मूर्ख जनता को भ्रंमित करके आडम्बर फैलाते रहों।मंदिर,मंस्जिद ,चर्च,गुरूद्वारा के नाम पर जम़ीन को हड्डपते रहों।कहते भी है तुम सबका भगवान,ईश्वर हर जगह है ,अगर हर जगह है तो जम़ीन की क्या आवश्यकता हैं।सबके सब बहुत बड़े ठ़ग हैं।मूर्ख जनता है ईश्वर का नाम लेकर डर,प्रकोप दिखाके डराते धमकाते रहो और लूटते रहों।पति जितना अधिक नास्तिक था पत्नी उतनी ही अधिक आस्तिक थी।पूजा-पाठ,कर्म काण्ड़ करने ही नहीं देता था ,घर में एक भी देवी देवता की न प्रतिमा थी न चित्र था।पत्नी का नाम सम्भावना था।कहती थी कर्म काण्ड तो भावनायें है,ईश्वर को पाना तो एक मात्र उपाय तो प्रभू का नाम स्मरण,निरन्तर जपना हैं।ईश्वर के नाम लेने से कोई रोक नहीं सकता हैं।बस भावनाओं को प्रकट करने के लिए अंकुश लगा सकते हो लेकिन स्मरण करने पर अंकुश कभी नहीं लगा सकते हैं। अविनाश ने कभी प्रसाद ग्रहण नहीं किया वो चरणामृत ग्रहण करके ऐसा महसूस कर रहा था,जैसे किसी काराबास से मुक्त हुआ हों।स्वयं पर विश्वास नहीं कर पा रहा था।यह कैसे सम्भव है?मैं नास्तिक हूँ ,आज कैसे प्रसाद ग्रहण कर सकता हूँ।कुछ समझ नहीं पा रहा था।एक महापुरुष,संत पास में आयें।लम्बी-लम्बी जटायें दाड़ी मूंछे थी,हाथ में कम्डल,ललाट पर चंदन का तीन उगलियों का टीका था,जैसे शिवजी के लगा होता हैं।पैर में खडाऊँ ,भगवा रंग में रंगी पोषाक थी।अविनाश के पास आकर शीष पर हाथ रखा,अविशान भी मंत्र मुग्ध था कुछ न कह सका और मन की भावनाओ से नत मस्तिष्क होकर प्रणाम किया। महात्मा:-वत्स।स्वयं को नास्तिक समझते थे आज क्या हुआ? अविनाश:-स्वयं आश्चर्य चकित हूँ।ऐसे कैसे हो सकता हो।जो दिखाई नहीं देता है तो कैसे मान लूँ।आज मैं स्वयं को इस परिवर्तन से रोक न सका ।ऐसे- कैसे हो सकता हैं। महात्मा:-ईश्वर के होने का क्या प्रमाण चाहिए? अविनाश:-अगर है तो दिखाई क्यों नहीं देते।ईश्वर अगर कण-कण में फिर मंदिर, मस्जिद,गरुद्वारा,चर्च क्यों? जब दिखाई ही नहीं देते तो प्रसाद ,आडम्बर क्यों?दीपक जलाना,धूप जलाना,माला पहनाना,पुष्प अर्पण करना क्यों? महात्मा:-अब तुम मेरे प्रश्न का उत्तर दों?हवा का स्वरुप क्या हैं?रोशनी का रंग क्या है?शरीर से क्या निकल जाने से मृत्युं हो जाती है?सूर्य रूकता क्यों नहीं है,पृथ्वी थमती क्यों नहीं है? अविनाश:-हवा को महसूस किया जाता है।प्रकाश को भी महसूस किया जाता हैं।गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी घूमती है,नत्रक्ष मण्ड़ल इसी के कारण परिक्रमण करते हैं।कहते सब है आत्मा निकल जाने से मृत्युं होती हैं।देखी किसी ने नहीं हैं। महात्मा:-और क्या साक्षात प्रमाण दूँ।ईश्वर एक छड़ के लिए स्थिर कर दें तो सब कुछ संतुलन बिगड़ जायेगें।हर जगह त्राहि- त्राहि मंच जायेगी।ईश्वर का स्वरुप हर कण -कण में विद्यमान में।ईश्वर की शक्ति को स्वयं मानव भी अनुभूति कर सकता हैं।प्राणाय,एकाग्रता साधना करके,अपने अंदर की कुण्डलियों को जागृति कर सकता हैं।ईश्वर हर जगह है लेकिन ईश्वर हर जगह उस ईश्वर को महसूस नहीं कर सकता हैं।मंदिर को देखकर स्वयं शीष झुक जाता है।यही आस्था है।आस्था का स्वरूप ही प्रतिमा है,यही प्रतिमा समाज को जोड़ने का कार्य करती हैं।प्रसाद भावनाएं है हम प्रकृति से अनगिनत बस्तुएँ ग्रहण करते और आस्था स्वरूप पहला निवाला फल,मिष्ठान आस्था स्वरुप ईश्वर क़ अर्पण करते हैं।हमारा अस्तत्व कुछ नहीं हैं।ईश्वर की ही हम सब संतान है।आस्था पर प्रहार करना सबसे बड़ा अपराध हैं।जब हम आस्था पर प्रहार करते है,तो ह्रदय से श्राप निकलता हैं।जब हम किसी का मझांक बनाते है अपशब्द कहते है तो उसके ह्रदय पर प्रहार करते है तो वो व्यक्ति मुख से जो शब्द निकालता है वो शब्द भविष्य में या आने बाले जन्म में अपना स्वरूप अवश्य दिखाता हैं।"मैंने भी तुम्हारा भविष्य पढ़ लिया हैं।तुम्हारी चार संतान हुई लेकिन जन्म लेने के उपरान्त काल का ग्रास बन चुकी हैं।"यह सब तुम्हारे कर्मो का ही फल है इसके कारण तुम अपनी संतान की किलकारी भी नहीं सुन पाते हों। अवनीश:-हाँ....क्या कारण है? महात्मा:-तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मो के कारण समाज का श्राप रूप में मिला है जिसके कारण तुम कभी बच्चे की किलकारी सुन नहीं पाओगें।यह पिछले जन्म से नहीं कही जन्मों से तुम निःसन्तान होकर ही काल का ग्रास बनते रहे हो और आने बाले कही जन्मों में श्राप के परिणाम को भुगतना ही पढ़ेगा। यह सुनकर अविनाश हाथ जोड़कर महात्मा के चरणो में गिर पढ़ा...:-कोई तो मार्ग होगा।यह दुख बहुत कष्टदायक हैं।कोई तो निराकरण होगा। महात्मा:-हाँ है,उस निराकरण के लिए ही तो तेरे पास आया हूँ।निराकरण के लिए तुम्हें अपनी भागिनी के साथ मिलकर कार्य करना होगा। अविनाश:-कैसा कार्य? महात्मा दो जन्म पूर्व तुमने मद में चूर स्वयं को ईश्वर घोषित किया था।समाज की भावनाओं का स्वरूप मंदिरो को तोड़कर अपनी प्रतिमायें प्रतिष्ठित की थी।उन प्रतिमाओ को तुमने स्वयं मिट्टी में दबा दी थी।उन प्रतिमाओं को निकाल कर मंदिर में पुनः स्थापति करवानी होगी,तब ही तुम इस श्राप से दोष मुक्त होगें।भावना स्वरूप समाज का श्राप है वो ही इससे मुक्ती दिलायेगें।यह कार्य इतना सरल नहीं हैं। अविनाश:-ऐसा क्यों? महात्मा:-जहाँ प्रकाश है वहाँ अंधकार है,जहाँ आशा है वहाँ निराशा है,जहाँ नास्तिक है वहाँ आस्तिक हैं।जहाँ अच्छाई है वहाँ बुराई है।तुमको अच्छे कार्य को करने के लिए बुरी शक्तियाँ बाँधा उत्तपन्न करगी।इन बाँधाओ को पार करके ही प्रतिमाओं को खोजकर मंदिर में स्थापति करना हैं।मंदिर शिवजी का है,शिवजी का ही परिवार है। अविनाश:-कहाँ पर,कहाँ जाना होगा? महात्मा:-तुम्हें स्वप्न में जाने का रास्ता अवगत होगा। यह रुद्धाक्ष माला है, इसको कंठ से कभी दूर न करना ।अपनी भार्या के साथ भवात्मक कार्य में सफलता प्राप्त करना। कहकर महात्मा ने रुद्धाक्ष की माला को अविनाश के कंठ में धारण करा दी।अविनाश ने नेत्र बंद करके शीष झुकाके बंदना कर रहा था,ऊ नमः शिवाय का मंत्र जप रहा था।नेत्र खोले तो महात्मा नहीं थें। अविनाश के मुख पर आशा ज्योति प्रज्जलित हो चुकी थी,उस ज्योति को जलाकर घर आ गया। (प्रथम अंक समाप्त)

बुधवार, 5 अगस्त 2020

कोरोना काल"श्री राम मंदिर शिलान्यास"

पाँच अगस्त दो हजार बीस2020 की तारीख स्वर्ण अंक्षरो में अंकित हो गई।विघ्नो को पार कर आखिरकार आस्था की विजय हुई।राम श्रेत भक्तो दुवारा त्रेतायुग में सम्पन्न हुआ था।कलयुग में भव्य मंदिर की भक्तो दुवारा सम्मपन्न होगा जिसका शिलान्यास भव्य हुआ।

रविवार, 14 अप्रैल 2019

राज नज़र आते हैं

दिल के आयने में राज नज़र आते है,
जब जब देखता हूँ आयना,
स्वयं के किरदारों में,
उलझते फंलसा नज़र आते है।।
जिंदगी के राग में उलझी सी जिंदगी,
सुरों के सरताज में मुग्धं,
अनकहे से किस्सो में ,
क्यों अपना ही किस्सा नज़र आता हैं।।
दिल के आयने में राज नज़र आते हैं....
चढ़ते ढ़लते सूरज के मनुहार वेला में,
कश्मकश सी अपनी हस्ती,
क्यों शादिशों के शिकार में,
क्यो अपना ही प्रतिबिम्भ नजर आता हैं।।
दिल के आयने में राज नज़र आते हैं...
सागर की मोझे उफनते सैलाब में,
भंवर की निर्दयता में,
फँसी अपनी  कस्ती सी,
क्यों निर्दयता का शिकार  नजर आता हैं।।
दिल के आयने में राज नज़र आते हैं....
प्रकृति के रहस्यों के संसार में,
मंनमुग्ध पुष्पों का जाल हो,
रहस्यमय बूटियों की माया हों,
क्यों रहस्यमय प्रतिबिम्भ नजर आता हैं।।
दिल के आयने में राज नजर आतें हैं...
जब जब देखता हूँ आयना,
स्वयं के किरदारों में,
उलझतें फंलसा नजर आतें हैं।।






शुक्रवार, 8 मार्च 2019

मैं परिभाषा हूँ

संकल्प की धारा हूँ,
निर्मल जल धारा हूँ,
पंथ की अवतार हूँ,
विषम की रसधार हूँ।
मैं औरत स्वाभिमान हूँ।।
विचलित मार्गो का द्वार हूँ,
पुःउत्थान का उद्धार हूँ,
अधर्म का नाश हूँ,
धर्म का युगमान हूँ,
क्षीण में शक्तिमान हूँ,
मैं औरत परिर्वतन हूँ।।
बंधनो का संगम हूँ,
शक्ति का परिचालक हूँ,
अशुद्ध में शुद्ध हूँ,
कृति में प्रकृति हूँ,
तत्व में धरा हूँ,
धरा में सम्माहित हूँ,
श्रृष्ठी का संचालन हूँ,
मैं औरत परिपूर्ण हूँ।।
अंलकार का श्रोत हूँ,
उपहार में प्रेम हूँ,
सौन्दर्य का स्वरुप हूँ,
कविता का मान हूँ,
शून्य में साहश हूँ,
तत्वों का स्वामित्व हूँ,
मैं औरत साधना हूँ।।
अंधकार की ज्योती हूँ,
दुष्टो का संघार हूँ,
निरंतरता का विकाश हूँ,
जीव में शक्ति हूँ,
ईश्वर की छाया हूँ,
मैं औरत की परिभाषा हूँ।
मैं भिभिन्नताओ का अखण्ड हूँ।।
संगठन की लिपि हूँ।
मैं औरत की परिभाषा हूँ।।

> आकाँक्षा जादौन

शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

प का कारनामा

'प' का देखो कारनामा,
जब2 हद से गुजरता है,
आखों में आसू और,
हृदय पर प्रहार करता है!!
आधा प और हे घातक,
 क्या 2कौतक करवाता है!!
प्यास लगें जन सबको,
जन सग्राम करवाता हैं!!
राजा रंक हे अधीर सब,
नत मस्तिक झुकवाता हैं!!
प्यास की ऐसी तृष्णा,राजा को
रंक चौखट पर झुकवाता है!!
प्यार का ढाई आक्षर क्या2,
अपनो से ही विद्रोह करवाता हैं!!
भूल के कर्मानंद होके बसीभूत,
प्यार का रोगी जन बन जाता है!!
छिङ जाते हे युद्ध महा संग्राम,
लाशो के अम्बार लगवाता है!!
कुल के कुल मिट जाते हैं सब,
प्यार की गाथाये अमर करवाता हैं!!
अब एक कढी और जुङी है,
प्याज भी संग्राम करवाता हैं!!
नेताओ का बनके मुद्दा देखो?
सत्ता चौकीदारो को गिरवाता हैं!!
मुद्दा लेके अखाङे सज जाते है,
गिराके खुद राजा बन जाता हैं!!
आधा प जख्मी शेर सा घातक,
खूखार' प 'बन तब जाता हे !!
प का देखो कारनामा,
जब2 हद से गुजरता है!!
आखो में आसू और,
हृदय पर प्रहार करता हैं!!
(आकाँक्षा जादौंन)
कोड स्निपेट कॉ

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

अटल जी चंदन बरसाते हैं


मैं क्या अर्पित कर पाऊँगी,
अटल जी स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
मैं क्या इत्र गिरा पाऊँगी,
वो स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
मै क्या क्या लिख पाऊँगी,
वो स्वंय गाथा कह जाते हैं।।

अटल सत्य अटल तारा बनकर
क्षितिज पर भी आज चमकेगा।।
माँ भारती की सेवा में स्मर्पित
कण कण में चंदन महकेगा।।
जननी कृष्णा से पारीजात पुष्प,
बन पालन कृष्णा से निर्माण।।
25दिस्बर1924 दिन था पावन
अवतरित हुआ अटल तारा।।
मैं क्या करुँ स्वंय बना निर्माता,
कण कण में रम गयें अटल तारा।।
वटेश्वर ग्राम था ग्वालियर धाम,
प्राम्भिक शिक्षा ग्वालियर बना।।
कानपुर में स्नातकोत्तर उपाधि रमणा,
संजोग ऐसा कहाँ देखा और सुना ।।
पिता पुत्र ने साथ की कानून पढ़ाई,
कानपुर गंवाह बना ऐसा संयोग का।।
मैं क्या अर्पित कर पाऊँगी,
अटल जी स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
धर्म,पांचजन्य,और अर्जुन संम्पादन ,
कर कार्यशैली से अवगत कराया।।
1939में राष्ट्रीय स्वंयसेवक बन कर,
कर्मपथ पर पितामाह बन  युग बनाया।।
अविवाहित रहकर प्रण तृण अर्पित,
हर सांस  माँ भारती को है अर्पित।।
1942में  अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन,
धरा के लिए तन मन में धधक उठी ज्वाला।।
ज्वाला में कलम चल पढ़ी बनके लेखनी,
बहकर  सारिता कण कण उपवन।।
मैं क्या अर्पित कर पाऊँगी,
अटल जी स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
कुछ कर पाने की जुझाऊँ जूझने की,
चल पढ़े एक नया गाथा गड़ने को।।
पढ़ लेते थे चित मन को गड़ देते थे,
लेखनी बन अंकुर को वृक्ष बना देंते थे।।
बसते चले गयें रोम रोम सुर बसते चले,
हार नहीं मानूँगा संकल्प सच होते गयें।।
नेहरु जी के कथन बनेगें प्रधानमंत्री,
कार्यपथ पर आगें बढ़ते बढ़ते गयें।।
1975आपात काल से निकली शाखायें.
जे पी आंदोलन से उदय हुआ शौर्य।।
पित्र सत्तात्मक के पथ पर एक और,
नये  पथ का अवतरित उदय हुआ ।।
1977में विदेश मंत्री बन कर दिखलाया,
संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी का वर्चस्व।।
वक्ता बनकर सर्वशक्ति का मान बढ़ाया,
सुन्न थे पक्ष विपक्ष अघोष थे शब्द।।
मै क्या अर्पित कर पाऊँगी,
अटल जी स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
तीन बार प्रधान मंत्री बनकर,
अखण्ड़ भारत को सूत्र में बंधाया।।
वक्ता बन शब्द दर शब्द कहते थे,
श्रोता बन स्थिर होकर नमन करते थें।।
अमेरिका से छुपकर दृढ़ दिखलाया,
कलाम के साथ पोखरण में कर कर।।
मई 1998में परीक्षण कर बतलाया ,
शक्तकरण हो गया है भारत का।।
शस्त्र भण्ड़ार में  परिमाणु जोड़कर ,
संसार को अचरज कर मनोवल वढ़ाया।।
आभा थी शानदार दमदार थी आवाज,
चित स्थिर हो जाता चेतना को जगाया।।
अजातुशस्त्रु बनकर किया अटल सत्य ,
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।।
भारत रत्न से बढ़कर क्या दे पायेगे,
अटल स्वंय बनकर चंदन बरसातें हैं।।
मैं क्या अर्पित कर पाऊँगी,
अटल जी स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
अटल सत्य अटल तारा बनकर,
क्षितिज पर आज चमकेगा।।
मैं क्या इत्र गिरा पाऊँगी,
वो स्वंय चंदन बरसाते हैं।।
मैं क्या क्या लिख पाऊँगी,
वो स्वंय गाथा कह जातें हैं।।
बार बार करती हूँ नमन नमन,
श्रंद्धा अर्पित कर शब्द कह पाई।।
अटल सत्य अटल सत्य......

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

दुर्भाग्य {उपन्यास}


पेडॊ की साखाऒ पर पछियो की चह चहचाहट वातावरण को गुंजयवान बना रही है ।ऐसा प्रतीत हो रहा है कि निराश हो चुकी जिदगी की दहलीज पर आखरी उम्मीद की चर्चा कर रहे है । अनसुने पदचाप पर अपने अपने मत व्यक्त कर रहे है।कितनी दीवाली आई और चली गई पर कभी रॊशनी का एक दिया जलाने कोई नहीं आया । जब किसी युवक के मुख से अपनी करूणा ममता रूपी माँ का नाम सुना तो प्रर्थना कर रहे कि इस उम्मीद को निराधार मत बनाना । फूल कलियाँ भी यही उम्मीद की आस कर रही है।उपवन का कण कण अपनी माँ के लिए उम्मीद की नजर  से देख रहा है।ऐसा क्या था ? पदचाप के साथ तारणी माँ के लिए उम्मीद की आस उपवन का कण कण कर रहा है।प्रत्येक दिन तारणी अपने भोजन में से आधा भाग पछियों को अर्पित कर देती । कभी कभी भोजन में देरी हो जाती तो पंछी ची ची कर शोर करने लगते ,माँ की साङी चोंच में दबाकर बच्चों जैसा हठ करते।ऎसा दृश्य माँ होने की अनुभूति का एहसास जगाती है। तारणी भी बच्चो आओ आओ..... कह कर पुकारती थी।पेङ पोधो का रख रखाव,कलियाँ फूलो से अनोखा स्नेह था, किसी को भी तोङने की सक्त चेतावनी थी। सौन्दर्य सरावोर हर किसी को अपनी तरफ आकृषित कर ही लेते है.इसी बीच फूल को तोङ लिया तो अच्छा पाठ सिखा दिया जाता। ऎसी ही घटना ने बाद बिवाद का अर्थ समझा दिया ,सबको सोचने को मजवूर कर दिया। एक वार संरक्षण कर्ता की महोदया गणतंत्र पर्व पर अतिथी रूप में आगमन हुआ।कार्यक्रम आगाज होने से पहले उपवन की शोभा देखनी चाही।उपवन की सौन्दर्यता को देखकर मन मुंग्ध हो गई कि कलियाँ पत्तियों को तोड कर गुच्छ बनाया ओर समारोह की तरफ जाने लगी जब तारिणी ने देखा तो भूल गई कौन हूँ मै! और कौन है महोदया!जिस हाथ में गुच्छ को पकङे थी उस हाथ से गुच्छ छीन लेती है और रोने लगती है। महोदया को बहुत क्रोध आया और अपनी बेवाक शक्ति का उंलघन कर तारिणी पर बरसे लगी ओर मुहँ से अंहकार के शब्द,उच्च आसन का कोतूहल बन बरसने लगी पर ये अंहकार पत्ति के उच्च आसन का दुःउपयोग उठाया जा रहा था।तारणी लहू लुहान हो गई थप्पङो की ओर शब्दों की गूज से सब उपवन में एकत्रित हो गये।आखिर तुझमें होशला कहाँ से आया? मेरे हाथो से गुच्छ छीन लिया.अपराधियो को समय समय पर खुराक मिलती ही रहनी चाहिए नहीं तो ओरो को सह मिलेगी, सबके सब वागी हो जायेगे।थप्पङो ओर घूसो से वार कर भङास निकालने मेँ जुटी थी. कर्मचारियों ने आके तारणी को अलग किया जो भङास निकाल रही थी।
      संचालन कर्ता अधिकारी ने गर्जन के साथ कहाँ,चुप हो जाओ......वास्तविकता जाननी चाही क्योकिं सब इक्कठे हो चुके थे, अतिथी, कर्मचारी, कोई गलत फैसला खुद पर हावी हो न जायें। सांन्तवना का मरहम लगाते हुऐ पूछाँ,तारणी तुम बताओ । बीच में पत्नी वोलने लगी.....
अधिकारी....जिससे पूछाँ जाये वही जवाव देगा।
तारणी....ङरते घबराते ...अंतरमऩ में बार बार अचेतऩ को चेतऩ होऩे का स्वप्ऩ या भ्रम वास्तविक से साक्षात्कार होने का प्रश्ऩ उठ रहा था। सागर में हर वक्त पवने चलती है,क्या वो कभी शान्त रहती है।ये छलावा है...तारणी भी समझ न सकी और स्नेह में ङूबती गई....कथा वाचक की तरह कहती गई......श्रोता भक्त बन सुनते गए.....,स्वयं तर्क वितर्क कर समाधाऩ देती गई........महोदय आपने मुझे अपऩा पक्ष रखने की अऩुमती दी इसके लिए आपका बहुत बहुत आभार.....प्रकृति अऩमोल धरोवर है जिसका हम मूल्य चुका नहीं सकते है,ये है तो जीवन है ..हम जीवन की कल्पना भी नही कर सकते है.पौधो पर खिले फूल उदास चहरे पर मुस्कान ला देते है.वादियो में धीरे धीरे झूलते पेडों की शाखओं पर पत्तियों की सरसराहट,बसंत ऋतु में नई कोपले नई उंमग,बरसात में टपकती बूंदे,रेशो से गिरती पत्त्तों पर सजती, धरा पर बिछती हिम की चादरे,सब सौन्दरर्य मय होता है कि प्रकृति के आगोश में खो जाऊँ......जितना भी कहाँ है ये तो ओस की मात्र बूंद है।आन्नद मय होना है तो प्रकृति से साक्षात्कार होंना पडेगा। अब आप सबके मन में प्रश्न उठ रहा होगा?फूल, फल,औषधियों के रुप में पेडो से छाल,पत्तियाँ,इत्यादि तोडेगे नहीं तो प्राप्त कैसे करेगे। प्रकृति की तुलना पंच तत्व से बने शरीर से कर नही सकते पर आधार तो बन ही सकते है।हम अपनी इन्द्रईयो दुवारा समाज के भागीदार बनते है लेकिन जीवन जीते हुऐ रक्त दान कर सकते है और मृत्यु के बाद अपना शरीर।हम जीवन जीते हुऐ और मृत्यु के बाद क्या दान करते है?दान करना या न करना व्यक्तगति निर्णय होता है। प्रकृति का अपना कोई व्यक्तगति निर्णय नही होता है। क्या उनमें जान नही है।क्या उन्हे दर्द नही होता है। हम अपने निज स्वार्थ के संसाधनो का अतिक्रमण करते जा रहे है जिसका परिणाम किसी से छुपा हैं? वंजर भूमि का विस्तार नदियों का सिकडुना,हिम श्रृंखलाओं का मैदानी विस्तार होना,अनायस बीमारियों का उदगम,दिन प्रतिदिन विस्तार होता जा रहा है।कारण एक ही है प्रकृति का हिरास।हमकों चाहिए बहुत कुछ पर करते कुछ नहीं है।पेड पोधे सबको लगाने चाहिए किसी एक का काम नही हैं।मैडम जी को मंन मुग्ध फूलो ने मोह लिया.फूल है ही जादूगर सबको मोह लेते है।प्रेम का प्रतीक,स्त्री श्रृंगार,वलिदानियो के नमन में सम्मपर्ति,नाम एक काम अनेक।मैडम जी ने कलियों  और पत्त्तियो को तोडा.कलियो को फूल बनना था.फूल तो अपनी तरफ आकृषित करते ही है तो क्या तोडा ही जायें.।कलियो के साथ कोई दुर्व्यवहार करे जैसे तोडना मसलना कुचलना तव मुझे नारी का चित्र नजर आता है कोई उसके साथ वर्वरता कर रहा है। दोनों ही कोमल होते है,दोनो ही स्नेह चाहते है .बस यही कारण था।उपवन के कण कण में मेरा ही जीवन बसता है। मैडम जी से हाथ जोडकर बार बार क्षमा मागती हूँ।  तालियों की ग़डगडाहट से तारणी की जय जयकार होने लगी...
       जो दिख रहा था वो वास्तव में धुंध थी हकीकत कुछ और ही थी। समारोह सम्मपन्न होने के बाद कहर बनके तारणी पर बरसने लगा। विजली के झटके दिए  जिसके कारण सुध वुध खो वैठी और अंधेरे  कमरे में फैक दिया। यह पहली वार नहीं जब जब आवाज उठाई तब तब उसके साथ असाय पीडा का परिचय दिया।धुंध छँटती है तव नई किरण  की सौगात भी नजर आने लगती है।एक वार पुन: नये संरक्षण महोदय ने उपवन की साज सज्जा रख रखाव का दायत्व तारणी को सोंप दिया। अपने मुताविक काम मिल गया उसी में अपना समय बिताने लगी।उपवन तारणी से तारणी उपवन से अनोखा रिश्ता जुड गया।
 अनजानी पदचाप सुनी तो सबकी की नजर टकटकी लगायें देखती रही.....किशोर अवस्था का यवुक,मुखारविन्दु की आभा तारणी के मुख से मेल खाती, व्यक्तगति की पहचान आँखो से पङी जा सकती है.आँखे सम्वेदनाओ,प्रेम ,भ्रमित,षङयन्त्र को पढ़ने वाला यंत्र है.जो अपने खेल के माहिर खिलाङी बन चुके होते है उनके लिए आँखो से मानवता के साथ खेल खेलना बन जाता है।किसी के हाथो की कटपुतली नही बल्कि ह्रदय की भावनाओ को आँखो से संचार व्यक्त करते है।यवुक की आँखो से तारणी के प्रति स्नेह सम्वेंदनाओ की आभा झलक रही थी।उपवन वासियों के लिए हर्ष की लहर दौङ गई।यह यवुक पहले भी कही वार आ चुका था।यवुक की नजर.... उपवन के बीच वृद्ध  की दहलीज पर खङी महिला पर पङी।
     सिर के वाल सफेद पङ चुके।शान्ती का प्रतीक वदन पर सफेद साङी चहरे पर वृद्ध रूपी झुरियाँ,कमर झुकी,डण्डे के सहारे खङी होकर,फूलो को पानी देती.पानी देने के वाद फूलो को छूके देख रही,ऐसा लग रहा है कि माँ अपने बच्चो को दुलार कर रही है।उपहार यह सब देख रहा है।आगे जाकर तारणी के पैर छूये।
उपहार.....दादी माँ आर्शीरवाद दो कि अंधूरी कहानी को पूरा कर सकू.अर्द्धसत्य को सत्य के दर्शन करा सकूँ।
तारणी ने चश्मे को सभाल के देखा...उपहार आया है देखकर बहुत खुश हुई।अपने जन्मोत्सब के दिन दो वर्ष से आ रहा था।उपहार भी देख कर अनदेखा कर देता तो शायद जो तारणी के मुखार पर खुशी दिख रही है वो कभी नही दिखती।बार बार एक ही प्रश्न क्यों पूछता है?अतीत के जख्मो को अतीत में ही रहने दों। एक तू ही तो है जो मेरे पास आता है।
उपहार......दादी माँ .अतीत का सत्य जानना है.आखिर किस कारण से आप यहाँ है?क्यो मै आपके पास छुपते छुपाता आता हूँ ?क्यो आपका सत्य छुपाया जाता है?हमकों आपके बारे में कभी पता ही नहीं चलता, काँलेज में मानसिकता से ग्रसित कुछ अराजकता के तत्व चुनाव में मुझे परास्त की चाह में किसी भी सीमा को लांघ सकते थे।कालेज चुनाव में परिवार के अतीत का चिट्ठा सबके सामने खोल के रखना।अतीत से मेरे चरित्र का आंकलन करना.ओछी राजनीति है।घर पर सबसे पूछाँ...तो सबका एक ही स्वर....मेरा भी मन आपके प्रति द्वेष का भाव था..मन में नफरत के अंकुर लेके आया था, आपके कारण मेरी जिदगी पर प्रश्न चिन्ह क्यों लग रहा है?जव देखा तो देखता रह गया.... आपको घायल पंछी के लिए व्याकुल देखा,उपचार के लिए भागकर जाना रास्ते में दो वार गिरना,खुद चोट खाना पर पंछी को हाथ से न गिरने देना.वृद्ध अवस्था में अपनी चिन्ता न करना। इस पङाव में शरीर भी साथ छोङने लगता है,आपके होशले ने अंतर मन में कही प्रश्नो का सैलाव आ गया बार बार प्रश्न करता जो मैं देख रहा हूँ वो दोखा है या सब कह रहे है वो दोखा है।दादी माँ दो साल से अपने जन्म दिन पर पूछँता हूँ पर आप कुछ नही बताती है.आज मैं यहाँ से नहीं जाऊगाँ। दादाजी  भी कहते थे लेकिन नाम नहीं बताते थें।मैने हठ पूर्वक कहाँ , तो न जाने  एक आस की उम्मीद से मेरी तरफ देखा। जैसे कुछ  अंधूरा है उसको पूर्ण करना हैं। कह रहें थे तुम से ही मेरी आस है तुम कर सकते हों। दादाजी ने बहुत कुछ बताया लेकिन पूर्ण सत्य क्या है? मन के चित्रों में प्रश्न चिन्ह हैं। मैंने भी प्रण कर ही लिया है .पूर्ण सत्य जानना ही हैं और जानकर ही रहूँगा।
तारणी ..... जो हुआ सो हुआ।कब बुलावा आ जायें,प्रभु घर जाने का।अतीत को अतीत ही रहने दो.जानकर हाशिल क्या होगा?अतीत को बदला नही जा सकता है।जख्म भर चुके है निशान ताउम्र रहेगे।जिस तरह जिंदगी के पन्नो पर लिखावट को मिटाकर नया श्रृजन नहीं कर सकते है वैसे ही जख्म के निसान को नहीं मिटा सकते।
उपहार.....दादी माँ अतीत अगर पेंन्सिल से लिखा हो, प्रश्न पूर्ण हो, उत्तर गलत हो,उसको सही किया जा सकता है।हमको पूर्ण विश्वास है आपका अतीत भी पेंन्सिल से ही लिखा गया है।हमको जानना है...दादी माँ आज मैं खाली हाथ यहाँ से नहीं जाऊगाँ।अब तक मैंने कुछ नहीं मागाँ।दादी माँ जन्मदिन का उपहार चाहिए।
तारणी...हाँ...मैं तेरा जन्मदिन कैसे भूल सकती हूँ।मैने तेरे लिए खीर बनाई है।
उपहार...दादी माँ आपको पता है।
तारणी...मुझको सबके वारे में पता है किसको क्या पंसद है।
उपहार...दादी माँ आपको सबके वारे में पता हैं लेकिन आप की किसी को चिन्ता नहीं है।आप किस हाल में कहाँ हैं?किसी को फर्क नहीं पङता।सब अपने में मस्त है। मुझे खीर नही चाहिए।अतीत को आज वर्तमान समझ कर सब कह दो। दादी का हाथ लेकर अपने सिर पर रख दिया...आपको आज बताना ही पङेगा।
उपहार जिद न कर।
दादी आज मेरा जन्मदिन है,उपहार तो देना ही होंगा।
तारणी अपने पोते की बात न टाल सकी।अक्सर देखा गया हे,वृद्धावस्था में अपनी सारी खुशी वेटे वेटी की अपेक्षा पोता पोती में झलकने लगती है।बच्चो के साथ खेलना,हँसना,अजीब अजीब बाते सुनना,बच्चा बन जाना.बचपन की हिठलोरी किलकारी ह्दय प्रफुल्लित से भर जाता हैं।पोता पोती के मोह जाल में फँस जाता है।बच्चे भी अपना वचपन दादा दादी,नाना नानी के आँचल में समेट देते है।बच्चे भी खुश वही रहते है जहाँ उनकी बाते सुने, खेले,वो सब दादा दादी ही करते है।बच्चो को दादा दादी से अच्छा खिलोना भला कौन मिल सकता है।
           आज तारणी भी पोते की मोह जाल में फँस गई। आखिर कार पोते की जिद के सामने झुक ही गई।एक बुरा ख्आव जानकर जिस अतीत को भूल चुकी थी आज फिर वही ख्आव को हकीकत में लाने लगी...
           उपहार मेरा दुर्भाग्य असुभ की काली छाया उसी दिन से छा गई जिस दिन मेरा जन्म हुआ।मेरा अशुभ नाम वचपन से ही पङ गया।जन्म से ही दुर्भाग्य का खेल सुरू हो गया।
मेरे पिता तुम्हारे पर दादा रघुवीर सिहं हास्पीटल के गली के चक्कर इधर से उधर,उधर से इधर काटते हुऐ,मन में अजीब अजीब तरह के ख्याल आ रहे थे।शादी के आठ साल बाद कही गोद भरी है। मुरादे माँगी,मन्नत रखी,वृत पूजा पाठ,सब यात्रायें की तब कही गोद भरी है।रघुवीर सिहं ने सारा दामोदार भगवान के ऊपर छोङा....भगवान सब कुछ ठीक ही करना।बस एक वेटा देदो इन आँखो को थोङा सकून देदो।कब से आस लगाये खङा हूँ।सुन्दरी आप्रेशन थ्रेटर में जिदंगी मौत के कश्मकश में जूज रही है।अपने पत्ति रघुवीर को निराश नहीं करना चाहती थी क्योकि आँखो में बच्चे के लिए तङफ देखी थी।आस पङोस के बच्चे घर आ जाते तो लाड, प्यार, दुलार सर आँखो में बिठा लेते।डाँ साहव ने तो पहले ही बता दिया था कि बच्चे के समय परेशानी हो सकती है। सुन्दरी को तो सिर्फ रघुवीर की आँखो में खुशी देखनी थी। डाँ साहव के सामने अजीव केश सामने आया जो पहली बार कोई स्त्री अपनी जिदंगी से जायदा अपने बच्चे को बचाना चाहती है,बार बार डाँ साहव से आग्रह कर रही थी.दर्द की पीङा में खुद जूझ रही है पर अपने पत्ति को खुशी देना चाहती है।
डाँ साहब....एक वार फिर सोंच लो।
सुन्दरी....डाँ साहव सोचना कैसा। मैंने उनकी आँखो में देखा है सपना उम्मीद की तडफ,कान व्याकुल है किलकारी सुनने को,बचपन को एकवार फिर से जीने की चाह, कितनी आसायें है आँखो में,मै कैसे धुधला कर दूँ।मैं अपने बच्चे के रूप में मैं ही तो हूँ..उसकी आँखो से मैं देखूँगी....मै न रहकर भी मैं हूँ, बस रिश्ता बदल जायेगा.पर मैं हूँ।मेरी चिन्ता न करो बस बच्चे को बचा लो,मैं आपकी शुक्रगुजार रहूँगी।
डाँ साहव...जैसी तुम्हारी मर्जी....मैं तो यही कोशिश करूँगी कि माँ और बच्चे की जान बच जायें।
सुन्दरी पीडा से व्याकुत थी...ग़ृह नक्षत्र की विकराल स्थति,ये कैसा सहयोग था शनि अमावस्या,शनि के जन्म के समय जो नक्षत्र की स्थति वही आज समय बना है।विधाता ही जान सकते थे भविष्य के गर्व में क्या छुपा है।मानव की चेतना में नवीन अंकुरित स्वप्न पलते रहते हे क्या सब पौधे से विशालकाय वृक्ष,वृक्ष से महत्वकाक्षाँयें क्या पूर्ण हो जाती है?बहुत से स्वप्न बीज से अंकुरित होने में ही दम तोङ देते है।क्रमवद प्रत्यनशील को ही महत्वकाक्षाँओ का ही फल प्राप्त होता है ।मानव की चेतना में नित्य अंकुरित पनपते रहते हे..वृक्ष कौन बनेगा ये तो विधाता ही जान सकता है।रघुवीर सिंह भी चेतना में स्वप्न पालने लगा पर नियति का खेल तो विधाता ही जाने।जव काँनो में खवर पङी कि सुन्दरी दुनियाँ में नहीं रही।पैर लडखडा गयें माला के मोती टूट के विखर गयें जो सुन्दरी ने शादी की पहली सालगिराह पर देकर कहाँ,"मेरी सासो की साज से बनी हे जब तक मैं हूँ तब तक यह है,मेरे होने का वजूद है.मेरी सासे थम जायें उस दिन  यह भी विखर जायेगी।सुन्दरी की सासो के साथ ही मोती भी विखर गये,मोती के साथ ही परिवार भी विखर गया। रघुवीर सिहं सुन्दरी को बहुत चाहता था।चाहत की पराकाष्ठा ऐसी थी दो दिन मायके चली जाती तो जिदंगी अंधूरी सी लगती .मै अंधूरा हूँ सुन्दरी के बिना। हर जगह साथ साथ ही जाते.वलाये लेकर आशीष देते नजर न लगे किसी की पर आज नजर लग चुकी थी।इसका असर था जो कुछ पल पहले वच्चे के लिए खुश था और दूसरे पल ही तूफान ने सब कुछ विखेर दिया।
नर्स बच्ची को गोद में लेके आई ..आपके यहाँ वेटी ने जन्म लिया है।
रघुवीर सिंह.....मेरी नजरो से दूर ले जाओ।जो जन्म लेते ही  अपनी माँ को खा गई वो शुभ नहीं हो सकती है अशुभ है अशुभ....
रघुवीर सिंह सुन्दरी के शोक में डूव गया।सुन्दरी के बिना जिन्दगी खत्म हो गई। आस पडौस वाले घुस पुस बाते करने लगे.लङकी का जन्म गण्डमूल मघा नक्षत्र में हुआ है माँ को तो कष्ट देना ही था।पिता से विक्षोभ  होना ही था अगर अभी भी इसका समाधान नहीं किया तो किस किस की जिंदगी में भूचाल लायेगी।ये तो वक्त ही बतायेगा।राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर उदय और मिलन के आधार पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। समय रहते इसकी पूजा अर्चना की जायें तो दोष दूर किया जा सकता है...नक्षत्र का मन्त्र जाप,27 कुओं का जल,27 तीर्थ स्थलों के कंकण,समुद्र का फेन,27छिद्र का घङा,27 पेङ के पत्ते,7 निर्धारित अनाज,7खेङो की मृतिका आदि दिव्य जङी बूटी औषधियों के द्वारा शान्ति प्रकिया सम्मन कराना चाहिए।यह क्रिया 27 दिन तक जबतक वह नक्षत्र हो 27 माला का जप,तर्पण मार्जन कर 27 लोगो को भोजन कराना  चाहिए।दक्षिणा देकर आयना द्वारा बच्चे का चेहरा देखना चाहिए।एक साल तक ननिहाल के वस्त्र धारण कराने चाहिए।मामा द्वारा लाये गये वस्त्र इत्यादि पूजा विधि पूर्ण की जाती है।गण्डमूल ननिहाल के लिए भी कष्टकारक होता है।माँ की गोद भी न मिल सकी न पिता के सिर का हाथ।मिली तो सिर्फ अशुभ नाम की पहचान और नानी की गोदी।
 नानी को उसमें अपनी वेटी सुन्दरी की छवि दिखाई देती थी।नानी का विश्वास था जिस ने सुन्दरी की कोख से जन्म लिया है, आम नहीं हो सकती है वो तो सबके दुख तरने वाली होगी। आस पङौस मोहल्ले की औरतो ने केतकी को सलाह दी जैसै भी बन सके गण्डमूल का निवारण कर लेना चाहिए।तुम्हारे सिवा कौन है।माँ का साया तो छिन चुका है पिता ने मुँह फेर लिया है,भगवान न चाये कोई और अनहोनी न हो जायें..अनाथ .अनाथ कहते ही रोक लिया ....ऐसा नहीं होगा....दुख को तारने
   केतकी सुन्दरी की भाँति तारणी का लालन पालन करने लगीं।रघुवीर सिहं को कौन सभाले।शराव को हमसफर बनाया।अक्सर देखा गया है आदमी पर विपदा आई खुद से टूट जायें या दुख भुलाना हो तो मयखाने की तरफ ही क्यो कदम चल पङते है?विपदा तो अमावस्या की छाया है जो धीरे धीरे कट जायेंगी और पूर्णिमा के चाँद की तरह खुसियाँ बरसने लगेगी।अमावस्या की रात को ओर नारकीय बनाने के लिए तम को दूर करने वाले दीपक को बुझा देना उचित है क्या?शराव किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती है वल्कि कायर,हारे हुऐ खिलाङी की चेतना को शून्य की और ले जाती है।रघुवीर सिहं भी उसी राह पर चल पङा।जायदाद की कोई कमी नहीं,दूसरी शादी भी जल्दी हो गई।वक्त हर जख्म को भर देता है।धीरे धीरे रघुवीर सिंह सुन्दरी को भूलने लगा और दूसरी पत्नी राघनी के साथ जिदगीं जीने लगा।समय चक्र भी धीरे धीरे बढने लगा। रघुवीर सिहं के यहाँ दूसरी पत्नी से लङकी ने जन्म लिया । उसका नाम सलौनी रखा। सलौनी को सर आँखो पर विठा कर रखता। सलौनी की किस्मत इस तरह चमकी कि उसका भाई कौशल ने धरती पर पहला कदम रखा। रघुवीर सिहं को अपना परिवार पूरा लगने लगा। सलौनी और कौशल को माँ वाप का स्नेह मिलने लगा । बदकिस्मत तारणी की थी जिसको पिता का साया भी नसीव न था। केतकी नानी माँ ने ममता दुलार दिया कि पिता का एहसास तक न होने दिया। समय चक्र आगे बढने लगा।दुनियाँ तकनीकी क्षेत्र में नये आयाम जोडते गये। बच्चे युवावस्था में कदम रख रहे थे।


आज सुबह कुछ खाश थी, पछियों की चहचहाट के बीच मंद मंद खुशबू हवा के साथ बह रही थी जैसे सब मिलके तारणी को 18वाँ जन्म दिन की शुभकामनायें दे रहे हो। अरुणमा शीशे से तारणी के मुख पर पङी तो तारणी ने निद्रा में खलल जानकर करवट लेली पर तभी अर्लाम बजने लगा। धुन के शब्द सुनकर एक पल की देर किये खङी हो गई। हैपा बर्थडे टू यू..........बहुत खुश थी कही दिनो से कही प्रश्न घूम रहे थे उन सबका जबाव जो मिलने वाला था। इससे पहले नानी माँ ने सक्त हिदायत दी और कहाँ वालिग होने से पहले किसी का उत्तर नही दूँगी। नानी माँ पाककक्ष में तारणी के लिए खीर बना रही थी।पीछे से जाकर नानी माँ को पकङ लिया..नानी माँ आज तो मेरा जन्मदिन है आज तो उपहार मेरी मर्जी का मिलेगा।
नानी माँ...हर जन्मदिन पर उपहार तेरी ही मर्जी का मिला है आज खाश कैसे?ठीक है बताओ क्या चाहिए?
तारणी....नानी माँ माँ के बारे में सब कुछ बताया लेकिन आपने मेरे पिता के बारे में कभी  कुछ नहीं बताया।जब जबमैंने पूछाँ तब तब आपने टाला है।कौन है।कहाँ रहते है।क्या नाम है।अन्तर मन में प्रशनो ने तूफान मचा रखा है।काँलेज में सब मजाक बनाते है।आखिर मेरी पहचान क्या है?आपको आज बताना ही होगा।
केतकी की आँखो से आँसू झरने लगें.......अब तक तो टाला पर अब मुश्किल है.तारणी को सबकुछ जानने का हक है।मन में ही सोंच रही थी।अतीत तारिणी का दुखमय है कैसे कहूँ...कैसे सैमना करेगी? एक न एक दिन समक्ष आना ही हैतो आज ही सही।
तारणी....नानी माँ आपकी आँखो में आँसू।आपकी आँखो में आँसू नही देख सकती हूँ।अव कभी भी आपसे नहीं पूँछूगी।स्नेह के हाथो से नानी माँ के आँसू पोछने लगी...केतकी ने स्नेह के हाथो से दुलार किया....तारणी तू मेरे आँसू से भाभुक क्यों हो जाती है।अगर मैं आँसू की व्याख्या करने लगी तो पूरा ग्रंथ लिख जायेगा।पहले से ही महान कवि जयशंकर प्रसाद ने आँसू के ऊपर काव्य लिख ङाला है।दुनियाँ के छल से कैसे समझ पाओगी। आँसू जाल भी है...नीर भी...प्रीत भी......शस्त्र भी.....ठग भी....मेरी एक ही सीख है जहाँ तुम आँसू को देखकर कमजोर पङी सामने वाला विजयी हो जायेगा इसलिए तुम कभी भी आँसू के माया जाल में नहीं फँसना है।18वाँ जन्मदिन है मत का अधिकार सरकार ने दे दिया है तो फिर मैं कैसे तुम्हारे अधिकार से वंचित कर सकती हूँ।मैं सबकुछ बताऊँगी।पिता का नाम रघुवीर सिंह है।
तारणी ने अचम्भे से पूँछा....सच में पिता का नाम रघुवीर सिंह है।
केतकी....आश्चर्य से क्यों पूछाँ?
तारणी....बस ऐसे ही।
नानीमाँ...तेरा नाम रघुवीर सिंह से जुङा है पर तेरी सूरत देखना पंसद नहीं करता है।
तारणी....नानी माँ...क्यों?मैंने ऐसा क्या कर दिया?
केतकी ने तारणी को विस्तार से घटना चक्र सुनाया।तारणी ने जब सुना दुर्भाग्य का वट्टा जन्म से लगा है तो पैरो के नीचे की जमींन सरक गई।खुद को ऐसा महसूस कर रही है जैसे डोर से कटी पतंग डाल से टूटा पत्ता सारे सपने एक पल में विखर गये। वादल तो छाये बिन बरसे चले जायें,फूल बिन खिले मुरझा गये. वही हालत तारणी का था।अपनी दुर्भाग्य को धिक्कार रही थी... ये ईश्वर मेरे साथ आपने ऐसा क्यो किया?वेटी को माँ से जुदा किया,माँ की गोदी वो सारी खुशी मुझसे छीन ली।पिता के होते हुऐ भी पिता की नजरों से दूर ।पिता का नाम मिलना था उस जगह नाम दिया अशुभ..दुर्भाग्य .....काँनो में गूंज रहा है। नानी माँ ने आलगिंन लगा लिया। मेरी सुन्दरी की काया हो ...सब गुण झलकते है ।
तारणी....नानी माँ नानी माँ....
नानी माँ....क्या हुआ?
तारणी.....नानी माँ ..मुझे छोङ कर कही मत जाना।मैं अकेली हो जाऊँगी।पापा का दिया नाम अशुभ मेरा पीछा नहीं छोङेगा ,डर लगने लगा है कही आपको खो न दूँ। मेरा नाम शायद ठीक ही रखा हैं,मैं किसी को खुशी नहीं दे सकती हूँ।जो भी मेरे साथ या करीब रहता है,मेरे कारण ही उसके जीवन में विप्पत्ति आती है। मैं ही उसके दुख का कारण बनती हूँ।नानी माँ मुझे ईश्वर ने जन्म कियों दिया?
नानी माँ....वेटी ऐसा मत कहो। भगवान की कोई भी वस्तु वेबुनियाद वेमतलव नहीं होती ।भगवान ने इस संसार में जो भी बनाया उसका कुछ न कुछ उद्देश्य अवश्य होता है। नीम का पेङ कितना कङवा होता है लेकिन उसके कितने लाभ है। कङवा होके भी अपनी मिठास सी जगह बना लेता है। शहद कितना मीठा होता है लेकिन मानव की वीमारी का कारण भी बन जाता है। मधुमेह से मानव की मृत्यु हो जाती है। नीम कङवा होके मधुमेह को ठीक कर देता है।वेटी भगवान की वस्तु का पता नहीं है ,कब अच्छे गुण अवगुण बन जायें।कब अवगुण गुणवान बन जायें।कुछ पता नही है सबका अपना अपना महत्व है।
तारणी...नानी माँ आप मुझे बताओ।कैसे अशुभ को शुभ बनाऊँ।दुर्भाग्य को भाग्य बनाऊँ?
नानी माँ....वेटी तुझे अशुभ को अपने जीवन से मिटाकर शुभ बनाना है। भगवान के आशीष की देन है,कभी किसी का अहित नहीं कर सकती।सबके दुख हरने वाली है,जग तारणी है,जग के दुख हरने वाली है।तू तारिणी तू तारिणीहैं।
तारणी..नानी माँ सच में जग तारणी हूँ।
नानीमाँ....हाँ तुझे जग तारणी बनना है।मुझसे एक वादा करना होगा।
तारणी....नानी माँ क्या?
केतकी....इस दुनियाँ को दिखाना होगा।अशुभ नहीं शुभ है।
तारणी...नानी माँ मैं आपसे वादा करती हूँ।मै अशुभ नाम मिटा दूँगी।
नानीमाँ....बाते बहुत हो गई..आज कालेज नहीं जाना?
तारणी....नानी माँ...हाँ जाना है।आज तो क्लास में इम्पोडेट लेक्चर है।आज अगर मिस हो जायेगा तो फिर समझ में नहीं आयेगा।
               


शेष है.......

शनिवार, 2 जून 2018

मसाल की लौ जलाते हैं

ख्आईशो के दीवार पर ,
चलो एक ईट और लगाते हैं।
सफर के कारवाँ पर,
चलो एक हस्ती और सजाते हैं।।
खामोश हुई आरजू पर,
चलो मसाल की लौ जलाते हैं।
धूमल हो चुकी हस्ती,
चलो खुद के अक्स से मिलाते हैं।।
जिंदा है अब भी कहानी बंदे,
खुद के अलफाजो से मिलाते हैं।
हार की चौखटो के उसपर,
चलो जीत की प्रेणा जगाते हैं।।
शून्य हीन चेतना से त्रस्त,
चलो उमंग के बीज रोपते हैं।
थक चुके वैवसी लाचारों से,
चलो गीता की ऊर्जा विखेरते हैं।।
विचलित मन की साखाओं को,
चलो वृक्ष से मिलाते है।।
विखरे जमींर के तिनको को,
चलो घरोदा फिर से बनातें है।।
पिघल चुके मोम की बूंदो से,
चलो फिर से मोम बनाते हैं।।
लडखडाते कदमों की जड को,
चलो निडर जड़ पदचाप बनाते हैं।।
व्योम की सीमायें निश्चित मानते,
चलों अन्नत अलौखिक दिखलाते हैं।।
दृढ़ सकल्प से कोई साहस नहीं,
चलों खुद दृढ़ से अवगत कराते हैं।।
परास्त हो चुकी आत्म शक्ति को,
चलो आत्म शक्ति से मिलाते हैं।।
ख्आईशो के दीवार पर,
चलो एक ईट और लगातें हैं।।
सफर के कारवाँ पर,
चलों एक हस्ती और सजातें हैं।।

सोमवार, 28 मई 2018

भविष्य दलदल

नवयुवक का भविष्य दलदल में फसाँ,

घर घर बैरोजगारी की सहता मार!!

हर  काम  घूस   के         है      नाम,

बिकता     ईमान   टंका   के दाम!!

डिगरी बिची चन्द    रुपयों   में,

किया कर्मचारी में भविष्य उज्ज्वल !!

देश की पतवार   जिसके  हाथ,

पङा रास्ते का तनिष्क पत्थर!!

हरी पत्ती में बन गया मास्टर,

टयूशन  को  बनाया रोज़ी रोटी!!

बच्चो का   सपना  इसी में देखा,

बिखरे  पत्तो  से बनाया  घरौधा!!

बस स्टोप पर चाट पकौङे बेचे,

घर घर   जाकर  बेचा  सामान!!

फ़ुटपाथ  पर कपङे  वर्तन बेचे,

घर घर जाके फैका  अखवार!!

बदली पहचान  नौकरी की खातिर,

ब्राहमण ठाकुर बदल के लिखा जाट!!

सिफारस में नेताओ से जोङा रिस्ता,

बदली  पहचान  लिखा    हैं नाम!!

पूर्वजो  की पूंजी  गिरवी  है रखी,

मित्रो रिस्तेदारो से लिया हैं धन!!

रख दी  छत  साहूकारो के हवाले,

साहूकारो से  लिया  हैं व्याज!!

सरकार  गिरी  मकान हुआ नीलाम,

मित्रो रिस्तेदारो से टूटा  है रिस्ता!!

साहूकारो    ने    लिखी   जमींन ,

लगता    सबको झूठा  किस्सा !!

मजबूरी में   इंसान  बना हैवान,

आंतकवादी  डाकू का बना सदस्य!!

लूटपाट हर तरफ़ कोहराम छाया,

छूटा  इंसान  बना महा दानव !!

पकङ  गये  उम्रकैद झूला  फाँसी,

मिल्ट्री की  गोली  का हुआ शिकार!!

सात पुस्तो  पर लग लया  है दाग,

धुला  नहीं है बना हुआ  निशान!!

धरा के नेत्रो  से बहता  पानी,

सच  होती  रही  है कहानी !!

तम  में   घिरा है भविष्य  ,

रोशनी  विखेरे   मेरी  जुवानी !!

आकाँक्षा जादौन

शनिवार, 12 मई 2018

हर पल साथ हूँ तेरे

मिटती आशाओं की एक छड़ की आशा हूँ,
तम से भय मय की एक किरण की आशा हूँ।।
शून्य हीन जड़ की एक अंकुर फूटती चेतना हूँ,
निराश हो चुकी शक्ति की शक्ति वेदना हूँ।।
मैं न होकर भी हूँ हर पल छड साथ हूँ  तेरे,
पग डगमग होते तेरे पल में सभालती तुझे।।
मंद में चूर पर कहाँ सुनता है मेरा तू स्वर,
हर कर्म से पहले भविष्य बतलाता हूँ तुझे।।
झूठ भ्रंम अतिक्रमण में सत्य है धुंधला,
तू बढ़ता चला गया बार बार किया आगाह।।
न मै माया ,न प्रंशस्नीय, न भ्रंम जाल हूँ,
वास्तविकता कटाक्ष धार की तलवार हूँ।।
जो सुनता मेरा स्वर करता मेरा अनुसरण,
विलासताओ में रहकर भी अहं से रहता दूर।।
अधीर में विचलित न होकर जागृति चेतना,
हार कर भी मुस्कान जीत की जागृति चेतना।।
मैं न होकर भी हूँ हर पल छड़ साथ हूँ तेरे,
पग डगमग होते तेरे पल में सभालती तुझे।।
मेरे स्वर को कितना भी किया हो निरादर,
मैं ममता तुल्य पग पग हूँ साथ मैं तेरे।।
घेरती निराशाओ में आशा का हूँ स्वर,
साहस छोड चुकी देह में साहस हूँ तेरे।।
भ्रंम जाल के होके अधीर तू बना दरवान,
गुलाम भ्रंम का मेरा स्वर तू कहाँ सुने।।
जो देता निर्देश करता  जाता अनुकरण,
मैने भी बार बार किया संचेत पर तू न सुने।।
दल दल में फँसता जाता है तू पग पग,
चाहत बहुत कुछ पाने की मेरी तू न सुने।।
तेरे मस्तिष्क का बनके भ्रंम का राजा,
तुझे सत्य नैतिक से ले जाता बहुत है दूर।
उस नैतिक पग भ्रष्ठ होने से गूँजता मेरा स्वर,
उस वक्त किया जिसने मेरा अनुसरण।।
एक छड की खुशी से अन्नत का स्वागत,
 भ्रंम का किया अनुकरण अन्नत श्राप।।
मैं न होकर भी हूँ हर पल साथ हूँ तेरे,
पग डगमग होते तेरेपल में सभालती तुझे।।
तम मय जीवन ग्रहण बना तब ऐसा तेरा,
निराशा में डूवा आत्मदाह का लिया प्रण।।
नैतिकता पर अंकुश एक छड़ बना कंलक,
मेरा स्वर हर कर्म के  फल का दर्पण।।
जो करता मेरा अनुकरण वैभव न होकर भी,
वैभव सम्मान का युग युग बन जाता सार्थक।।
प्रेणा बन कर जग का  बन जाता शुभ चिन्तक,
जीवन बरदान बन हो जाता है जीवन सार्थक।।
भ्रंम माया सपने में  जिसमें जो जो जकडा़ हैं,
शांती ने पथ छोडा है अंशान्ती का पहरा है।।
माया पाकर भी क्यों माया का हुआ अधीर है,
बिलासता में बसकर क्यों बिलासता का अधीर है।।
मैं न होकर भी हर पल छड़ साथ हूँ तेरे,
पग डगमग होते तेरे पग में सभालती हूँ तुझे।।
अंशान्ती मन में भी गूंजता मेरा अब भी स्वर,
जानकर भी लोटना नहीं चाता तेरा मन क्यों।
भ्रंम ने जकडा तुझे मेरे स्वर का नहीं अनुकरण,
स्वर का अनुकरण होकर भी लोटता नहीं क्यों?
मैं न होकर भी सर पल छड़ साथ हूँ तेरे,
पग डगमग होते तेरे पग सभालती हूँ तुझे।।

सोमवार, 7 मई 2018

तस्वीर बदलती है


किसी मेरे मित्र ने फैसवुक पर एक पेंटिग लाईक की. मेरे फैसवुक पर नजर आने लगीं। बहुत ही सुंन्दर एक संदेश प्रेरक तस्वीर थी। मैने तस्वीर को जूम करके देखा तो वह संदेश विछङे हुए मित्र की झलक लिए थी. जहाँ पेंटिग की अभिनेत्री ख्याति शोहरत के शिखर पर थी,जनता  एक झलक के लिए लालायित थी. पर अभिनेत्री के आँखो से अश्क झलक रहे थे। मन में मित्र की छवि जो दूर होती जा रही थी। जव मैने यह तस्वीर देखी तव मुझे अपने मित्र की याद आने लगीं। उसको भी तस्वीर बनाने का वहुत शोक था। डेस्क.खिङकी, मेज पर चौक से तस्वीर बनाती रहती थी।कभी कभी तो अध्यापक पढाते रहते वो उनकी ही तस्वीर डेस्क पर बनाती तो कभी काँपी पर पेंन से, वो कम वात करती पर जाने मन में क्या सोंचती रहती थी?अपने ही ख्यालो में खोई रहती थी। न जाने क्यों वो खामोश रहकर अपनी तस्वीरो में बहुत कुछ कह जाती थी।जैसे जैसे आगे की क्लास में पहुँचते जा रहे उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति चित्रकार की और वढती जा रही थी। कालेज में मनमुग्ध वाटिका प्रयोगात्मक के लिए छोटा सा रूप जलाशय में उछल कूद करते मेढक, फूलो पर सजती रंग विरंगी तितलियाँ ,चढती शाखाओ पर लताये को अपनी तस्वीर में ऐसे प्रस्तुति क्या कि लगता ही नहीं था कि यह स्कूल की वाटिका का दृश्य है. लगता था कि किसी प्रसिद्ध पर्यटक का दृश्य हो। इस तस्वीर के लिए उसे कालेज में विशेष उपहार दिया गया था और सबको तस्वीर दिखाई गई थी।पर न जाने क्यों मेरी आँखो में न उतरने वाली तस्वीर बस गई थी।इस तस्वीर को देखकर अपने मित्र की बहुत याद आने लगीं। मैं उसका सहपाठी था क्योकि हम छोटे से कसवें में रहते थे वहाँ लङकी की मित्र लङकी ही होती थी ,वहाँ पर बात करने पर हगांमा हो जाता हैं। मन गङंत कहानियाँ बनाई जाती है यह सब घर पर पता चल जाये तो पढना लिखना बंद कर दिया जाता हैं। खाशकर लङकियो से तो जितनी दूरी बनाई जाये उतना ही अच्छा रहता हैं।
                   मै उसकी चित्रकारी देखकर मोहित हो गया पर कुछ न कह सका. मै नहीं चाहता था कि मेरे कारण उसका जीवन अधर में लटक जायें।पढाई छूट जायें और मैं अपने आपको कभी माफ न कर पाऊँ। देखने मैं सुंदर शांत स्वभाव गंम्भीर चितन करने वाली जिसकी झलक तस्वीर में देख चुके थे. उसकी सहेली उतनी ही वाचाल थी जहाँ पर वैठने के लिए जगह बनानी हो वहाँ कचर पचर बाते सुरू कर देती और वो उनकी वातो से परेशान होकर जगह छोङ देते,उस जगह पर अपना कव्जा पाकर वहुत खुश हो जाती थी जैसे कोई जंग जीत ली हो। मै अपनें मन की बात कभी न कह पाया और माध्यमिक के वाद रास्ते अलग अलग हो गयें। मेरा वीटेक में दाखिला हो गया और मैं अपनी पढाई करने वाहर चला गया। मित्र सहपाठी वही छूट गयें। वो सारी मीठी यादें जिदंगी के किस्से बन गयें।आज तस्वीर देखी तो वो सारे किस्से याद आने लगें। मेरा मन न माना और उस पेंटिग वाली को मित्र निवेदन भेज दिया। उधर तुंरत स्वीकार का मैसेज टाईम लाईन पर आया।
हलो.......
धन्यवाद...आपने निवेदन स्वीकार किया।
धन्यवाद तो आपका कहना चाहिए। आपने निवेदन भेजा। प्रोफाईल पिक्चर में बदले बदले नजर आ रहे हो।
क्या हम पहले से मिले है? क्या मै आपको जानता हूँ?
इतने सारे सवाल एक साथ....हाँ जानती हू। अव तुम बताओ नाम क्या है?
तुम्हारे प्रोफाईल पिक्चर पर तो पेंटिग लगीं हैं। अगर मैं सही हूँ तो तुम जागृति हों।
हाँ....और तुम्हारा नाम धैर्य है। मेरी फ्रेङ लिस्ट तो लम्वी है पर कालेज वाले कोई मित्र नहीं है। फोलोवर भी बहुत है पर कोई मित्र नहीं......कहते कहते....आँनलाईन से चली गई....
मैं सोचने लगा....बताओ...जागृति ने हमको पहचान लिया। जो शांत रहने वाली आज बोलने लगीं.....यह तो कमाल हो गया।
कहते कहते ...कालेज वाले समय में खो गया......छुप छुपके देखता था....
छुप छुपके देखे मेरी नजर....
डर लगता है खुद से मगर....
गुस्ताकी न कर वैठूँ भूल से....
तोहमत न लग जाये तुम पर भूल से...
मेरी ही खता सजा न हो नजर...
डर लगता है खुद से मगर...
तू ही मेरा सकून...तू ही मेरा रहनुमा है...
तुझसे ही जिंदा हूँ ...तू ही मेरा जीवन है...
छुपाके रखे थे कितने अरमान....
खुद ही जाने किसको क्या खवर...
उम्मीद टूट चुकी थी ऐसा हुआ असर...
तुझसे करके बात खोया खोया वेखवर...
डर लगता हैं रात का ख्आव न ओझल..
भागता है जिया सजाता अरमान...
थम जा ठहर जा ख्आव न औझल..
तू ही मेरा सकून ...तू ही मेरा रहनुमा...
तुझसे ही जिंदा हूँ...तू ही मेरा जीवन...
मैं अव इस इंतजार मैं था, कव आँनलाईन होगी? बहुत कुछ कहना था ....बहुत से सवाल थे...मै रात को उठ उठकर फैसवुक चैक करता कि आँनलाईन तो नहीं है।मै रातभर सो न सका बस कालेज दिन ऎसे लग रहे थे जैसे आज ही की बात हों। कभी मैं खुद ही मुस्करा जाता, तो कही सरमाके नजर चुराता...आँफिस में सब बार बार पूँछते क्या हुआ? मुस्करा क्यों रहे हो? मैरे पास कोई जवाव नहीं था.बस फैसवुक पर आँनलाईन होने का इंतजार था...मै किसी के प्रश्न का उत्तर भी नहीं देना चाहता था, कही मैं इधर बात करता रहा और वो आँनलाईन होके चली भी जायें।
     मै मैस में रात का भोजन कर रहा था,फैसवुक आँन था वो आँनलाईन हुई मैने खाना छोङकर कमरे मैं आ गया....आते आते ही मैने....
हैलो.....जागृति.....
कहकर हाथ धोने चला गया।
हाँ.....कल मेरा फोन डिसचार्ज हो गया था।
अच्छा..और कैसी हो?
मैने कुछ और नहीं कहाँ कि कितनी वेसवरी से इंतजार कर रहा था। बहुत सी बाते करनी थी...इतने दिनो बाद जो मिले है।
हाँ....हमको भी..
तुम्हारी शादी हो गई क्या?
क्यों?
बस ऐसे ही।
हाँ हुई भी और नहीं भी....
क्या मतलव?
चलो छोङो क्यो जख्मो को कुरेदना।
ठीक है तुम्हारी मर्जी ....नहीं बताना चाहती तो न सहीं....
बता दूँगी....एक बात तो बतोओ। तुम तो इंजीनियर हो फिर भी ...इतनी जल्दी हिन्दी में कैसे लिख लेते हो ?वो भी इतनी अच्छी।
हिन्दी अपनी पहचान है...इसको कैसे भूल सकते है। इंग्लिस आँफिस के लिए बहुत है। हम इतने आगे भी न निकल जाये कि अपनी जङो को भूल जाँऊ...हमारी सभ्यता संस्कृति की धरोवर है हम सभालेगे तव ही आने वाली पीढी को सिखा सकते हैं। चायें कोई मेरी इस सोंच को मजाक बनायें पर यह सबक है हम कहाँ से जुङे है। हमारी जङे गाँव से जुङी है यह हमको नहीं भूलना हैं। करो वह जो तुमको अच्छा लगें..दिखावे से तो खुदको दोखा देना हैं। मै गोराविंत होता हूँ अपनी मात्र भाषा में खुदको जीकर...चीन वाले सारे कामकाज तकनीकी गैरतकनीकी काम अपनी ही भाषा में करते है और हम इंग्लिस में क्यों? हम अपनी बात को अच्छे से अपनी मात्र भाषा में विना रूके  व्याख्या कर सकते है। हम इंग्लिस में ही वोलेगे और कोई वोले तो उसका मजाक बनायेगे। जहाँ जरूरत है वहाँ इंग्लिस वैसे नहीं...कुछ जायदा ही हो गया.....
नहीं आपने सच कहाँ है।आपने प्रभावित किया...खैर हमको इंग्लिस में वातचीत करनी नहीं आती है।एक आप है और एक वो..... कहती कहती रूक गई..
आप रूक क्यो गई?
बताओ ना....
हाँ वताऊँगी.....खामोश होने की...जुल्म रहने की सजा मिली है अब और नहीं...मैने फैसला किया वदल दूँगी खुदको....नजरिया को..सबसे बात करूँगी.। सब सहेली की शादी हो गई...मेरी भी....आपके ही जैसे इंजीनियर थे..........कहते कहते फिर रूक गई.....
आप कुछ कहते कहते रूक गई.....
छोङो मेरे बारे में जानने की .....आप अपने बारे में बताईयें। आपकी शादी हो गई।
नहीं अभी नहीं....माँ ढूडँ रही है...कोई मिल जायें।
आपको... कैसी पंसद हैँ?
कुछ नहीं....बस मुझे समझ सकें....मैं उसे....
अच्छा है।
पहले आप चुप चुप गुम सुम सी रहती थी।आपसे तो कभी बात भी नहीं होती थी फिर भी आप हमसे बात कर रही है.....हमको अच्छा लगा।
वक्त के साथ चलना चाहिए...नहीं तो हम पिछङ जायेगे। पर अभी भी कुछ से ही बात करती हूँ पर अपने आप को बदल दूँगी।
बदलना क्यो हैं? किसी एक के लिए अपने आप को बदलना ठीक नहीं हैं। आपकी खामोशी बहुत कुछ रंगो के माध्यम से अगुंलियो के थिरकन से..कल्पनाओ के अर्थाय सागरो से अनमोल रत्न खोज खोज कर चित्र में पियोह देती हो। अतुल्नीय अविश्वसनीय प्रतिभा भगवान किसी किसी को ही देते है। ऐसी प्रतिभा का किसी के लिए अंस्त नहीं करना चाहिए वल्कि उसको निखारना चाहिए..। इसलिए उसकी नित्य अभ्यास करना चाहिए... उसी अभ्यास का आपको फल मिला है.। मैने आपकी पेंटिग देखी है जिसमें आपको कही पुरूस्कारो से सम्मानित किया गया हैं।
आपने देख ली...
हाँ...आप तो स्कूल समय से ही चित्र बनाती थी ..कभी डेस्क पर ,कभी वेचों पर कभी खिङकी पर आज उसका ही प्रतिफल हैं। मै इतना तो कह सकता हूँ आपका यहाँ तक पहुँचना आसान नहीं रहा होगा।
हाँ... पर अब फिर बात करेगे। अभी मुझे कुछ काम हैं।…..ठीक है....
अव रोज उससे नेट पर चेट होती पर अपने बारे में कुछ नही बताती....हमको ऐसा लग रहा था जैसे कुछ तो ऐसा है जो छुपाया जा रहा है पर क्या? हर वार पूँछा,...उसने हर वार बहाना बनाके दूसरी बात छेङ देती।
मैने उसकी प्रोफाईल चैक की कि कौन कौन जागृति के मित्र है। उस फेंङ लिस्ट में जागृति की सहेली भी नजर आई, जिसका नाम करूणा था..मैने करूणा को फ्रेङ निवेदन भेज दिया। उसने मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया। 
हैलो......करूणा....पहचाना.......।
हाँ...तुम्हारा नाम धैर्य हैं। उस वक्त कालेज में तुम्हारा इंजीनियर में सिलेक्सन हुआ था वो भी विना कोचिग के ...यह बात सर ने प्रार्थना स्थल में बताया था। वैसे भी  छँटवी कक्षा से इंटर तक सहपाठी रहे है तो कैसे नहीं पहचानेगे। फिर जहाँ से हम है वही से आप भी हो तो कैसे भूल सकते हैं?
बहुत बहुत आभार आपने इतनी सहजता से विस्त्रित पहचान दीं।
हाँ....चलो अच्छा लगा। आजकल हो कहाँ?
मै सिविल इंजीनियर हूँ...अभी दिल्ली में ही हूँ। और आप कहाँ हो?
मै भी दिल्ली में ही हूँ मेरे पत्ती देव गुङगाँव में जाँव करते हैं।
अच्छा लगा आपसे बात करके। जागृति की फ्रेड लिस्ट में से आपको खोजा हैं। जागृति तो बहुत वढी चित्रकार हो गई है। उसकी पेंटिग सेयर की जाती है गोराविंत करती है पेंटिग ..
पर क्या कहे? जो दिखती है उतनी सरल जिंदगी नहीं हैं। जागृति ने बहुत कुछ देखा हैं।
क्या? मैने काफी बार पूँछा पर कुछ नहीं बताया।
धैर्य एक बात वताओ ...तुम्हारी शादी हो गई है ।
करूणा क्यो पूँछा,?
बस ऐसे ही...
नहीं..
मैं जानना चाहता हूँ..जागृति के बारे में...
धैर्य तुम शादी करोगे जागृति से..
क्या....अचानक ऐसे कहाँ तो कुछ कह नहीं सका..
मैने सीधे सीधे शादी के लिए पूँछ लिया.....अच्छा नहीं लगा।
अचाचक कहाँ,करूणा पहले जागृति के वारे में वताओ?“
जागृति की कहानी जानकर तुम भी दूरी बना लोगे।
ऐसा क्यों कह रही हो कि मैं ऐसा करूगाँ? ठीक है तुमने सीधे सीधे शादी करने की बात कही है तो मैं भी घुमा फिराके बात नहीं करूँगा। अब तक नहीं कहाँ वो आज कह ही देता हूँ।
क्या? छुपा रखा था अव तक .....
मैं जागृति को पंसद करता था पर कभी कहाँ नहीं, मेरे एक गलत कदम के कारण भविष्य अधर में न लटक जायें। जो भी भावनायें थी अंदर ही अंदर रखी और माध्यमिक के बाद हमारी दिशाये भी बदल गई। सात साल बाद फैसवुक के माध्यम से बातचीत हो रही हैं।
कमाल का है नेट आँनलाईन.... यानिक तुम अंदर ही अंदर पंसद करते थे लेकिन बहुत देर कर दी कहने में.....पर अभी भी देर नहीं हुई है।
मै जानना चाहता हूँ....इन सात साल मैं क्या हुआ है? जागृति के जीवन में जो भी घटना घटी कह दों.....जो भी बन सकेगा मै करूँगा...आपने शादी के लिए पूँछा तो मै भी तैयार हूँ, क्या जागृति करेगी?
धैर्य कल बात करूँ.. लम्वी कहानी है...ससुराल मैं हूँ...मायका नहीं है जो मन मर्जी कर लूँ....
करूणा हँसमुख चंचल छवि की है पहले भी बात कर लेती थी तब उसे सब ऐसे घूर घूर के देखते थे जैसे क्या गुना कर दिया है हम छोटे से कसँवे के कालेज में पढते थे, जहाँ लङके और लङकियो की अलग अलग कक्षाये होती थी. कुछ विषय ऐसे होते थे जहाँ साथ साथ ही पढना होता था जैसे कला वर्ग का भूगोल और विज्रान वर्ग की कक्षाये साथ ही देनी होती थी। अभी भी कसँवा के हालात ऐसे ही है जैसे पहले थे कालेज मॆ अव भी पांवदी है पहले जैसी कि वातचीत नहीं करना..हँसहँस कर सङक पर नहीं चलना अकेले लङकियो का वाजार नहीं जाना... पर अव यह सोंच कुछ मध्यमिक परिवार में अभी भी जो चाये शहर हो या कसवाँ नहीं बदलती हैं। अगर एक नजर से देखा जाये तो गलत नहीं है कुछ पांवदी लङको लङकियो को सभ्य आचरण प्रगृतिशील के पथ पर ले जाती हैं। लङके गुट बनाके भविष्य निर्माण के समय वेतुके वातचीत करना ...लङकियो को घूरना उनका पीछा करना अभ्रद व्यवहार करना अनैतिक के पथ पर ले जाती है, जव समय हाथ से निकल जाये तव सिर्फ पछतावा के सिवा कुछ नही रहता है। जीवन निर्भाह के लिए कोई स्थिर उच्चतर रोजगार नहीं होता हैं।जव समय था तव उस मूल्य समय को वर्वाद कर दिया आवारा गर्दी में न कोई पढाई उस वक्त पुराने दिन करके रोना आता है। पांवदी होना हितकर है श्राप नहीं हाँ माना अच्छा नहीं लगता है पर इसका मूल्य समय पर पता चलता हैं। मै अभी भी पुराने दिनो की मीठी यादों मॆ चला गया, पर साथ ही साथ एक अलग ही वैचेनी थी कि
 जागृति के जीवन में ऐसा क्या घटित हुआ है जिसके कारण खुदको बदलना स्वीकार कर लिया....ऐसा क्या हुआ?कव हुआ? कैसे हुआ? बहुत से सवाल थे जिसका जवाव तो सिर्फ करूणा ही दे सकती थी। मेरा मन व्यथित था वेसवरी से इंतजार था कि कव करूणा आँनलाईन होगी मेरे सवालो के जवाव मिलेगें। मन न आँफिस में लग रहा था न किसी अन्य कार्य में बस नजर टिकी थी फैसवुक पर कव करुणा आँनलाईन हो और मेरी जिज्ञासा शान्त हो। करुणा का फैसवुक पर मैसेज आया...
हैलो धैर्य......
कैसे हो...
मेरा मन तो किसी कार्य में नहीं लग रहा था,बस फैसवुक खोलके वैढा था जैसे ही मैसेज आया ....मैं खुश हो गया और उत्तर भेज दिया....हाँ सच कहूँ तो मै ठीक नहीं हूँ.....मेरा मन व्यथित है.कव से तुम्हारा इंतजार कर रहा था कि कव आँनलाईन होगी मेरे सवाल का जवाव दोगी..
अब मै गृहणी हूँ तो बहुत से कामकाज होते है. अब फुरसत मिली है तो मैने तुमसे बात करने की सोची जो कल अंधूरी रह गई थी।
हाँ....मै जागृति के बारे में जानने के लिए उत्सुक हूँ। ऐसा क्या हुआ है ?
स्नातक के वाद ही...जागृति की शादी मैकेनिकल इंजीनियर से हो गई. ऊँचा खानदान सब कुछ अच्छा था.....खानदान परिवार कितना ही अच्छा हो, पर जव तक जिसका हाथ थामकर नये परिवार से संस्कृति से अवगत करायें वो ही वेकदर करने वाला निकले तो शादी सम्पर्ण की जगह समझोता बन जाती हैं। समझोता भी ऐसा जिसमें पत्ती के अनुसार अपना व्यक्तव्य बदलो .जैसे पंसद हो वैसे रहो....अगर किसी भी कार्य की अवहेलना की तो वार वार नीचा दिखाने का एक मोके को हाथ से न गवाना. पल पल उङारना मारना। पति की नीचता मानसकिता के चलते परिवार भी अपने रंग बदलने लगते है. वो भी पल पल अपमान करते हैं। एक लङकी अपना सबकुछ छोङकर एक अनजाने व्यक्ति का हाथ थामकर नये सफर पर निकल पढती है कि मुझको सभालने वाला मेरे साथ चल रहा है. जव वही हाथ छोङ दे तो जिंदगी उस दोहराये पर खङी कर देती है जहाँ नजर तो सवकुछ आता हैं. सब अपने ही दिखते है पर परिस्थतियाँ बदल चुकी होती है। माता पिता पर वोझ औऱ वङ जाता है और भी वच्चो की शादी में रुकावट पैदा करती है. छोङी गई स्त्री की दशा आज के दोर में वन में भटकती जानकी की तरह हैं।माता पिता के लिए परिस्थतियाँ भिन्न हो पहले जैसा दुलार न हो पर पहला घर और आखरी घर मायका ही रहता है। और वच्चो की शादी और मुहल्ले वालो के ताने मानसिकता को दिशाहीन बना देती है। छोङी गई स्त्री मायके में शरीर पर रिसता घाव है जो शरीर को पीङा तो देता है पर अलग नहीं किया जा सकता हैं। माता पिता जव तक जीवत रहते है वेटी का दर्द को तो समझते है पर कुछ कर नही सकते है...समाज से तो लङा जा सकता है पर खुद के अंशो से कैसे लङे। भाई और भाभी वार वार ताने देते है वुरा भला कहते है दुतकारते है....तव वो औरत पल पल कितनी मोते मरती होगी।  आसान है पर करना उतना ही कठिन है एक स्त्री का तलाक सुदा जीवन जीना कठिन हैं।जो भईया राखी के दिन हमेशा साथ खङ होने का दावा करता था वो ही जली कटी वाते कहता हैं। भाभी तो एक ताना मारना छोङती नहीं है.. वहुत कुछ सहा है,वहुत कुछ देखा है जागृति ने....
धैर्य....हाँ....इतना कुछ हो गया हमको कुछ भी नही पता.. आखिर जागृति के पति को किस बात का घंमङ था क्या था? ऐसा असके पास जो औरो से अलग बनायें...वहुत से डाँक्टर इंजीनियर या कोई विशेष शिक्षा प्राप्त कर अच्छी नोकरी करते है तो किस वात का घंमङ है। आखिर ऐसा क्या था जो सवसे अलग वनायें? अपनी जीविका के साधन के लिए कोई भी चुनाव करें पर उस की कदर कोई कोई ही कर पाता है उसका मूल्य कोई कोई ही जान पाता है। एक डाँक्टर तव सफल डाँक्टर है जव उसकी गरिमा को पहचान पाये सही मुल्य समझ पायें...जैसे कि तुमको यह दायत्व मिला है जव किसी वीमारी मॆ ग्रसित होते है तव परिवार वालो के लिए डाँक्टर भगवान से कम नहीं है..भगवान की उपाधी दे देते हैं। पर डाक्टर उस उपाधी को वरकरार नही रख पाते है और अंहकार के आवेश मे और पद को तिरस्कार कर देते हैं. अमीर के हितैशी बन जाते है और गैरसरकारी हास्पीटल वाले मोटी रकम छापना सुरु कर देते है. समाज सेवा नहीं एक व्यापार बन जाता हैं। गरीव को निरादर की नजर से देखते है पर अमीर को सम्मान की नजर से देखते है. इस पद की गरिमा को जिसने पहचाना जिसके लिए समाज सेवा से वढ कर कुछ नही हैं. गैरसरकारी अस्पताल में एक दो दिन मुफ्त परामर्श की सुविधा और शल्य चिकत्सा के लिए छूट एक अलग ही पहचान बनाती हैं। उसकी यश कीर्ति जन जन तक पहुँचती है।पर यह हर कोई नहीं समझ सकता हैं गरीव सिर्फ पैसो के मामले में होते पर रंक से राजा बनाके ये उस्ताद होते है।
धैर्य.. तुम्हारी सोंच तो अलग हैं...इंजीनियर कैसे अपने व्यक्तत्व को निखार सकते हैं।यह भी वतलाओ...
नहीं....बस ऐसे ही कह गया. जायदा ही कह गया...किसी भी वात को विस्तार पूर्वक कहना मेरी आदत है पर यह हर किसी को अच्छी नहीं लगती है।
सबकी अपनी अपनी राय है, कौन किस तरह सोंचता हैं।
मै भी ऐसे ही सबके सामने नहीं कहता हूँ, सामने वाले का मनोदशा को समझ कर ही विस्तार से कहता हूँ।
तुमको तो लेखक बनना चाहिए...यकीनन अच्छे से बात का स्पष्ट्रीकरण कर सकते हो, एकवार तो जरुर सोचने को मजवूर कर सकते हो। एक वार लोग बात को नहीं सुनेगे पर लिखी हुई बात को पढी तो चिन्तन करने पर विवश जरुर हो जायेगें।
करुणा लेखक तो वहुत कुछ लिखते है पर एकवार कोशिश जरुर करेगे, किसी भी वात को लेकर उठते तूफान को लिखने की कोशिश करेगे। वताओ......बातो बातो में जो सच जानना था वो तो भूल ही चुके है...आखिर जागृति पर केसे केसे प्रताणित क्या जाता था?
जव प्रताणित की सीमा पर कर ,उस मुकाम पर पहुँच चुकी थी। जव जागृति के लिए ससुराल के दरवाजे हमेशा हमेशा के लिए वंद कर देने के संकेत लिए ,मायके में अपने सामान के साथ अकेली आ पहुँची। सुध वुध खोई रिक्से से उतर कर दहलीज पर कदम रखते ही माँ से लिपट कर बहुत रोई.. रोते रोते अपनी व्यर्था सुनाने लगी पर आवाज स्पष्ठ न होने के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था। घुटन की सास से निकल कर वातावरण की खुली हवा में सास लेकर ....आराम से आपवीती कह सुनानी... जव जागृति मायके आई हुई थी, तव मैं भी मायके में ही थी। जव उसकी ऐसी हालत के वारे में पता चला तो उससे मिलने उसके घर जा पहुँची।.
    पहले तो मुझसे गले लग कर बहुत रोई...रोले रोले.....रोने से जी हल्का हो जायेगा...जव शांत हुई तो अपनी आप वीती सुनाई ही नहीं वल्कि गम्भीर चोटो को भी दिखाया....देखकर मै विचलित हो गई कोई कैसे इतना नीचता तक जा सकता हैं? जितना खुला भाग उसपर कोई भी चोट के निसान नहीं...अंदरूनी भाग चोट के निसान से नीली लाल पढ चुकी थी. सुलगती सिगरेट से दागने के अनगिनत निसान थे....कहाँ कहाँ नही दागा कह भी नही सकते है।पत्ती की निद्नीय को देखकर अच्छाई से लिप्त  ससुराल के मुखङे से नकाव हट गया और अपना कहर बरसाना सुरू कर दिया।
    शरूआत तव से होती है...जो फोन पर रात भर घंटो चिपका रहता था..वादे कस्मे साथ जीने मरने की बाते करता था। उसके तेवर शादी के वाद कैसे वदल गयें? जागृति के पापा ने खूव दहेज दिया था...सुरु के दिनो में तो जागृति की खूव तारीफ होती थी पर फिर अचानक वदलाव आ गया। जागृति छोटे से कसँवे में रहती है,बहुत सी चीजे है जो वोलने का ढग, वैढने का ढग,पहनने का ढग सब शहर से भिन्न होता है। हम जिस माहोल में रहते है वहाँ गाँव की भाषा भी वोली जाती है जिसका हम शहर में नही भूल पाते है । जागृति भी गाँव की भाषा वोल जाती थी. सब उसकी मजाक बनाते थे...कहते थे, लो गवार आ गई....मेर्नस नाम की चींज नहीं है...क्या ठेट दैहाती भाषा वोलती हैं...अग्रेजी के विल्कुल मैर्नस नही हैं...वोलने में हाय, हैलो. चम्मच को स्पून नहीं  कहती।...जव हम सब बात कर रहे है तो क्या तुम्हारा वोलना जरूरी है?....क्या कहती हो सोई हमारे यहाँ ऐसा कहते है. यह सोई क्या होता है?ऐसे ही उसकी वोलने पर पांवदी लगा दी जव तक वोलने का ढग नहीं सीख लेती हो तव तक वोलोगी नहीं....किसी के सौन्दर्य की तारीफ करने में हाय सैक्सी...सो वोम लग रही हो, सो हाँट ...सो चिली सो पटाखा कहना अगर मैर्नस होते है।नमस्ते की जगह गले लगना चूमना, हाथ मिलाना मैर्नस है। हिन्दी वोलना गवार अग्रेजी वोलना ऐटयूट को नापने की मापनी है।हिन्दी वोलने के वीच में अपनी स्थाई समुदाय वोलने की भाषा खङी वोली, भोजपुरी व्रजभाषा का उपयोग करना वैड मैर्नस है। शहरी करण में जवतक अग्रेजी के शव्द न वोले तव तक मैनर्स नहीं है।
जागृति हिन्दू रीतरिवाज की तरह एक ग्रहणी की तरह सौलह श्रंगार को सजाती तो उसकी हँसी उङाई जाती है. माँग में मोटी पट्टी की तरह सिंदूर,आँखो में काजल,वीच में महरूम विंदी, चोटी गुथी हुई,गहरी लिप्टिक,कलाई भरके चूढी,चटक रंग की साङी, छम छम करती पायल ऐसा रूप सजाकर शादी के दूसरे दिन ही रसोई घर में आई,यह सोचकर कि सब खुश हो जायेगे, पत्ती तो मुंग्ध हो जायेगे पर सव उसको देखकर हँसने लगें.... जागृति के पत्ती ने जव देखा ,यह क्या गवार सा रूप बना रखा है। कहते कहते ही...हाथ से माँग का सिदूर पोछ डाला ....ऐसे सोलह श्रंगार करने से कुछ नही होता है जितनी उमर है उतनी ही जियेगे। पत्ती को जो पंसद हो वही करना चाहिए आज के वाद ऐसे गवारू कपडे नहीं पहनना है। मिनी स्कर्ट,फ्राँक ,गाऊन जींस टाँप में रहना मैनर्स है। जींस टाँप को अपना लिया, सूट सलवार पर भी पांवदी थी।
हद तो तव हो गई जव साथ में एकवार पार्टी में मिनी स्कर्ट पहना कर ले गया। पहनने की आदत तो थी नही जो अपनी स्कर्ट को नीचे खीचती रही।किसी से बात करने की वजय चुप रहना ही वेहतर समझा। जहाँ का दृश्य  पति पत्नी दूसरे के साथ नृत्य कर रहे है, मर्यादा की सीमा क्या थी? नर नारी के हाथो में झलकते जाम दूसरे के वाँहो में झूलना, शहरीकरण के यह मैनर्स है। पार्टी भी किसलिए थी प्रमोशन के लिए ....जागृति एक कोने में चुप सी वैढी थी पर किसी व्यक्ति की नजर उस पर पढ गई उसने साथ में ड्रान्स करने के लिए कहाँ, नहीं....
वार वार वह व्यक्ति कहता रहा.....आखिर में उस व्यक्ति ने हाथ पकङ के खीचा, पर यह वात जागृति को अच्छी नहीं लगी, उसने चिल्लाकर कहाँ, जव एकवार वोल दिया नही करना तो जिद क्यों”?
पार्टी में एकदम सन्नाटा छा गया...जागृति के पति ने विना कुछ पूछँ...सबके सामने जागृति पर चाटा जङ दिया. तेरी हिम्मत कैसे हुई...ऊँची आवाज में वाँस से वात करने की. तू गवार है गवार ही रहेगी. मेरी ही गलती थी जो तुझको यहाँ लेके आया..तूने मेरी नोकरी पर लात मारी है मेरे वाँस पर चिल्लाकर....
तभी एक लङकी आई....ओ सिट यार...क्या गवाँरू टाईप की वीवी चूज की हैं. तुम जैसे हैडसम क्रेजी के लिए कितनी जान छिङकती हैं। कहते कहते हाथ पकङ कर ड्रासफ्लोर पर ले गई...
जाते जाते जागृति के पति ने कहाँ, मेरी लाईफ ङिस्कास्टिग कर दी है. दूर हो जाओ....अपनी सूरत भी मत दिखाना. किसी के साथ  ड्रास न करना मैर्नस नही है..एकहाथ में जाम दूसरे हाथ में अपने साथी की जगह किसी ओर का हाथ थामना मैर्नस हैं। यह रात उसके जीवन में ग्रहण बनके आई और जिंदगी को वेरंग कर दिया।
मन बहुत विचलित था कैसे उठते तूफान को शांत करें? अपनी भावनाओ को अपने अंदर उठते अनगिनत प्रश्न को अपनी कला में उतार देती थी।कोई नही  था जो उसकी पीङा समझ सकें। अपनी व्यर्था को भावनाओ को रंगो में रंग कर चित्रपटल पर उतार देती थी  उसके पती की नजर एक रात उसके चित्रकारी पर पढी, जव पार्टी में से नसे में धुत लङखङाते कदम के साथ, उसी लङकी के साथ घर मे आया जव रात अपने चर्म पर थी..पती को तो कोई फिक्र नही थी पर जागृति राह देखती थी। चित्रकारी पूरी हो चुकी थी रंग अभी सूखने वाकी थे...उसकी नजर पढी कि देखकर खुश होगे पर,पास में रखा पानी का गिलास उठाया और उस चित्रकारी पर फैक दिया. और तो कुछ आता नही है बस गाँव की लीपपोत को यहाँ पर भी वरकरार रखा हैं। तुमसे तो शादी करके मेरी लाईफ की तो वाँट लग गई है। गवाँरू न वोलने का ढग न पहनने का ढग न स्टैन्डर्स पढाई क्या की है ...हाँ...आर्टवर्ग  से पहले समाजशास्त्र से एम ए और आर्ट में यह लीपपोत..कहाँ हम और कहाँ तू कोई मेल है। मैने किया है मैकेनिकल इंजीनियर में एम टेक, सो व्यूटीफुल लेडी एम वी ए जो आज एच आर हैड है। ये सारी वाते करता रहा और जागृति कुछ न कर सकी...जाते जाते कहाँ, मेरे रूम में आने की जरूरत नहीं है, आज की रात व्यूटीफुल लेडी के साथ तुम जैसी गवाँरू की यही जगह है लावी में...
हर दिन घुट घुटके जीना पढ रहा था ...इस ग्रहण का कव अंत होगा? पूरे घर का कामकाज कराती, वात वात पर ताने सुनाती जलील करती.. तू इन डिवोस पेपर पर साईन कर और निकल जा मेरी नजर से...पर जागृति नहीं करती थी क्यों? मायके मॆ गई तो और वहिनो की शादी मॆ अङर्चन आयेगी. कैसे होगी शादी..जैसे भी हो ससुराल से निकाली गई, पती की छोडी स्त्री के लिए कही जगह नहीं है।मारपीट की सारी हद पार कर दी..आखिरकार जागृति ने भी हार मान ली और तलाक के पेपर पर हस्ताक्षर कर दिये और ससुराल से निकाल दिया।
माँ पिता को भी चिन्ता थी, अव इन लङकियो का क्या होगा कैसे होगी शादी?छोङी गई स्त्री के लिए..आगे सफर वहुत कठिन होता है।जागृति टूट चुकी होती अगर उसकी छोटी वहिन तर्क वितर्क की ईमारत न गढती... जो वकालात कर रही थी वो भी अपने हिम्मत से ...लङकियो को पढाई के लिए ऐसे घर से दूर नही भेजते थे..पर उसकी जिद थी किसी की नहीं मानी सरकार के अनुदान की सहायता से पढाई कर रही थी। घर पर जागृति के आ जाने से मातम सा छा गया था, सब ऐसी नजर से देखते थे जैसे कितना वढा जुर्म कर  दिया हो। चाची ताई और भाभी ऐसे ताने मारते...कैसी कुलछनी हुई है पूरे घर को ले ढूवी अब कौन करेगा इनकी लङकियो से शादी... भईया भी कहने से नही चुकते थे। जागृति को धीरज वधाँने वाला कोई नहीं था....अपनी जिंदगी को वोझ समझने लगी थी, इस वेरंग जिदगी को खत्म करने की सोंच लिए गाँव के पास नहर की तरफ भाग निकली...उधर से जागृति की बहिन कंगार आ रही थी...कंगार कुछ कह पाती ...पुल से चढ कर नहर में छलाग लगा दी....पीछे पीछे कंगार ने भी छलाग लगा दी...और जागृति को डूवने से वचा लिया.अकेले कंधे पर वाँजू को  सहारा देकर घर ले आई।चारपाई पर लिटा दिया...मेला देखने वालो का मजमा जुड गया।जागृति अपने दर्द का हाल करूणा से सुना देती कौन क्या कह रहा हैं।करूणा होशला देती पर आखिर कव तक अपने आप से जूजती रहती लोगो के ताने सुन सुनके रहन शक्ति क्षीण हो चुकी थी, तव फैसला किया, न रहेगा वाँस न वजेगी वासुरी....कंगार को सारी घटना करुणा ने वता दी। क्यो? किस कारण से आज जागृति को यह हाल हुआ है।
कंगार का आज इंतहान था। देखना था कितना सीखा है. अपने तर्क वितर्क से एक निर्जीव हो चुकी साखा में जीने की चेतना जगा सकती है कि नहीं...... कंगार... आप सबके ताने किसी भी जीवित व्यक्ति को निर्जीव बना सकते हैं।यह परिवार है जहाँ मुश्किलो में साथ होना चाहिए था, वहाँ अपनी अंदर दवी सुलगती चिंगारी को प्रंचंड अग्नि बनाने में आप सबको तो निर्पुणता हाशिल हैं। बहिना इनके ताने के कारण अनमोल काया को त्याग करने चली. यह सब तो यही चाहते है कि हम टूट जायें। जब एक औरत होकर दूसरी औरत का दर्द न समझे तो उन सबको समझाना वेकार है। वैसे ही पाषाण पर कहने से चित्र उत्कृष्ठ हो सकें.... यहाँ कहने से नहीं वल्कि तुमको इतना सक्षम बनना है कि खुद ही वोलती वंद हो जायें। बहिना अब तुम यहाँ एक क्षण न रूकोगी चलो मेरे साथ अब कहने सुनने का समय नहीं है कुछ करने का समय है।मम्मी पापा आप चिंता मत करना, इन लोगो का मत सोचों ये होते ही है किसी के दुख को कम नहीं करते है वल्कि और वढा देते हैं।
कंगार जागृति को अपने साथ शहर ले आई और होशला देने लगी।जो खूवी थी उसको अपनी जीने की वजय बनाने के लिए प्रोत्साहित करने लगी।पुरानी जिंदगी को वुरा ख्आव जानकर भूलने को कहती।खुश रखने के लिए बाहर घुमाने ले जाती. पेंटिग करेने का सामान लेके रख दिया और खोई हुई शक्ति को जगाकर ....सुन्न स्थति में चली गई चित्रकार को जगाया, मन के अंदर कल्पनाओ के रंग भरकर चित्रपटल पर उतारने लगी।....कंगार ने उन चित्रो को वेवसाईड पर खाता बनाके चित्रो को अपलोड कर देती. देखते देखते सहारना के साथ पेंटिग ने किस्मत ही वदल दीं। सोहरत दौलत अपना नाम एक अलग ही पहचान बन गई। जो ताने मारते थे सब देखते ही रह गयें। दौलत सब जख्म भर देती है,  उसके अतीत से जायदा आज को महत्व देती हैं। शोहरत दौलत सब बदल लेती है। जिसने कला को पहचाना नहीं अपमान किया आज कला ही उसकी पहचान हैं।अमीर लोगो के घर की सोभा वढाती हैं जिसके लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए सज्ज हैं।उच्च कोटि की प्रतियोगता में सम्मान का प्रतीक रूपी तमंगा मिला। यहाँ तक पहुँचने में समय और संर्घष की सीढी पार कर उसका प्रतिफल मिला हैं।
करूणा के कहे शव्द को मैने अपनी लेखनी दुवारा लिखने की कोशिश की।लिखने के लिए प्रेरित भी करुणा ने ही किया था ।पर मेरे मन में ङर था कि जागृति के साथ इतना कुछ हुआ है, कही मुझे भी उसी तराजू में न तोलने लगे। एकवार विश्वास पर चोट लगें तो दूध का जला छाँच भी फूक फूक कर पीता हैं। कैसे जागृति से कहूँ ,मन की वात क्या समझेगी...उठक पटक व्याकुलता के कारण चैन नहीं था. तभी मन में विचार आया क्यो न करुणा का सहारा लिया जाये।बहुत कुछ सहा है अकेले...हाँ तभी याद आया करुणा ने कहाँ भी था, कि तुम शादी करोगे।
        कही भी मन नही लगता थोङी सी खुशी दे दू तो अपने आपको धन्य समझूगा. डर भी था कही मना कर दिया तो क्या होगा?दूसरे पल ही अगर मना भी कर देगी तो उसका हक है।मुझे जागृति का सम्मान करना होगा। जव करुणा से अपनी मन की वात कह डाली,कि एक वार जागृति से वात करे. मै हाथ थामना चाहता हूँ एकवार और मोका देना चाहिए, अपनी जिंदगी को....हर वार डरावने सपने नहीं आते है कभी तो मीठे सपने आते है जो मुस्कान लाते हैं। करुणा भी यही चाहती थी कि जागृति को समझने वाला ही नहीं वल्कि प्रत्येक औरत का सम्मान करने वाला धर्य जैसा ही व्यक्ति मिले।
करुणा हाँ मै कोशिश ही नही वल्कि राजी भी करुँगी, जव खुशी स्वयं दस्तक दे रही है। तो उसका सम्मान करना चाहिए..निराधर नहीं करना चाहिए।
धैर्य जागृति के ख्यालो में खो गया....
 ठहर जायें नज़र ये इल्म जानती हो..
हो जायें काफिर ये कशिश जानती हों..
तेरे दरिमियान आँके सुध भूल बैठा हूँ,ठहरी नज़र है जग भूल वैठा हूँ!!
पहले विंदाश अलबत्ता परिदां था,तेरी मुडेंर का रहनुमा परिदां हूँ!!
तेरी एक झलक का अक्स ढूँडता हूँ,वार वार बस तुझमें ही तुझको ढूँडता हूँ!!
ज़िंदगी क्या है?आज सबब जानता हूँ,तुझ बिन अंधूरी किताव हिस्सा मानता हूँ!
तू हुई मेरी मंजिल....मैं तेरा राही.....
तुझसे ज़िंदा हूँ ......मैं तेरा राही...
तलब किया इजहार किया सौ वार कहाँ,तेरी खामोशी वार वार हाँ की तरफ़ जायें!
लव्ज को इजहार करने का फरमान दो,मैं व्याकुल हूँ सुनने  का रसपान दों!!
मुस्कराके चली जाना दूर से पलट जाना,तिरछी नजरों से बिन कहें हाल बयाँ करना!
खामोशियो में तेरा आशिकाना पंसद हैं,शकून  मिल जायें बस लव्जो हाल बयाँ कर दो! 
इस पंरिदो को अपने पिजडे में ग़ुलाम कर लो,उमर भर तेरी छाँव का रहनुमा पंरिदा रहूँ!!
बस और क्या? इस हस्ती को अपनी हस्ती में शामिल कर लो!!
बस और क्या?इस हस्ती को अपनी हस्ती में शामिल कर लो!!
तू ही मेरी मंजिल....मैं तेरा राही...
तुझसे ही ज़िंदा हूँ...मे तेरा राही...

करुणा ने जागृति को फोन करके सारी वात कह सुनाई...धैर्य शादी करना चाहता हैं.. सबकुछ को भूलके एक मौका और देना चाहिए।धैर्य ने खुद कहाँ है,तू ऐसे ही बिना सोचे समझे मना मत कर देना. शान्ती मे सोचके..मेरा कहाँ माने तो हाँ कर देना।
जागृति कुछ कहना चाहती थी पर करूणा ने मौका ही नही दिया ।जव करुणा ने सब बात कह ङाली तो कहती है..तू भी कुछ कह ना..एकवार फोन पर बात कर लेना।तु कुछ कहती क्यों नहीं है?
जागृति...और कुछ कहना है, कि अव मै कुछ कहूँ...
करुणा..नहीं कह ना..
जागृति..एकवार ट्रैन छूट जायें फिर रुकने का नाम नहीं लेती है..वक वक लगी रहती है कभी तो सामने वाले की सुनने लिया करो...आखिर करना क्या चाहती हैं.बस अपने ही सवाल और अपने ही जवाव... करूणा मैं भी एकवार धैर्य से मिलना चाहती हूँ..जो भी कहना है मिलके कहेगे।तारवावू खवर पहुँचा देना...फिर दोनो हँसने लगी...
जागृति की आकाँक्षा अनुसार मिलने का कार्यक्रम रखा गया..रेस्तरा में जहाँ पहले से ही धैर्य इंतजार कर रहा था ।इस दुविधा के साथ आखिर मिलके क्या वात करना चाहती है?कही लताङ तो लगाने के लिए  नही वुलाया है.अजीव अजीव नकारात्मक ही विचार आ रहे थे।करुणा के साथ जागृति पास आ कर खङी हो गई..धैर्य को आने की खवर भी नहीं हुई.....
करुणा ने बहुत आवाज लगाई...पर एक वार भी जवाव नहीं दिया..करुणा ने मेज पर रखे पानी के गिलास को उठाकर..पानी को हाथ मे लेकर छीटे चहरे पर मारे....पानी के छीटे पढते ही धैर्य हङवङा गया...यह देखकर करुणा की हँसी छूट गई..जागृति भी मंद मंद मुस्काने लगी. धैर्य भी हँसने लगा...
करुणा कहाँ खोये हुए थे...अभी से शादी के सपने तो नही देखने लगें।
धैर्य.. नहीं तुम्हारी सहेली इतनी जल्दी हाँ कहेगी क्या?
करुणा...ये तो तुमको स्वंय ही पूछँना होगा...और वाजू पकङ के पीछे से सामने खङा किया।
धैर्य टकटकी लगाके देखना चाहता था ,पर मन ने इंजाजत नही दी।पता नहीं क्या फैसला होगा?और नजर चुरा ली सामने देखने की वजाय इधर उधर देखने लगा।
जागृति  फोन में कुछ करने लगीं.एकपल के वाद कहाँ.यह एन जो ओ कौन चलता हैं?नाम है संचालन कर्ता ...धैर्य सिहं..
नाम सुनते ही धैर्य ने कहाँ.हाँ हम सब मिलके चलाते हैं। प्रताङित, असाय, समाज से भहिष्कृति जैसी महिलाओ के लिए ,सक्षम बनाने की एक पहल हैं. पर जागृति इसका क्या लेना देना?.शादी का निर्णय तुम्हारा है।
जागृति..यह भी बता दो इस एन जी वो में हर साल जागृति कलावर्ग से दान दिया जाता है। यह कहाँ से आता है?
धैर्य एक पल के लिए सुन्न रह गया. हाँ मेरे दिमांग में क्यों नही आया तुम्हारा नाम?वो तुम थी…..
जागृति...मैं तो जरिया हूँ ...मुझ जैसे हार चुकी महिलाओ के लिए एक किरण तुम्हारा एन जी ओ दिखाता है, इससे वङी वात क्या हो सकती हैं। तुम्हारे प्रस्ताव पर सोचना कैसा.जव सोंच अच्छी हो, तव ही एक नई पहल कर सकते है।मै तुम्हारी इसी पहल के कारण हाँ कहती हूँ।
जागृति के हाँ कहते ही...धैर्य की नजर जागृति को टकटकी लगाके निहारने लगीं।